बांसवाड़ा-आचार्य पुलक सागरजी महाराज ने अपने प्रवचन दिए। जिसमें उन्होंने कहा कि जीवन में हर किसी के पास समस्या रहती है। चाहे वह कोई भी व्यक्ति हो, हर किसी के पास अपना दुख है। किसी की शादी हो गई तो दुख, नहीं हुई तो दुख, खाना,पीना ,मकान हर किसी चीज का दुख है। लेकिन समझदारी हो सुख ही सुख है, अगर नासमझी हो तो फिर दुख ही दुख नजर आते हैं। आज के लोगों को अपनों से ज्यादा पडौसी से ज्यादा दुखा है। आचार्य जी ने कहा देख लोग सीएए कानून पड़ोसियों के लिए लेकर आए लेकिन आग घर में लग गई। दिल्ली धू धू कर जली। यह प्रजातंत्र देश है यहां हर किसी धर्म को अपने अपने धर्म को मानने का हक है। पूजा करने का हक है। इबादत करने का हक है। लेकिन समस्या तब आती है जब मंदिर की घंटी अंजान को चिढ़ाती है और मस्जिद की मजाक बनती है। अपने अपने धर्म की पालना करना चाहिए। कोई इबादत करता है तो कोई पीले चावल। तो किसी को क्या दिक्कत होनी चाहिए। जिसको अपनी शांति के लिए जैसे करना है करना चाहिए। लेकिन अब मामला मंदिर मस्जिदों का कोर्ट में चलने लग गया है। पढ़े लिखे लोग तो मंदिरों में जाना कम कर दिया है कि जो घर के मामले कोर्ट में जाते थे अब यही हाल मंदिरों का है जिनके मामले भी कोर्ट में जा रहे हैं। “मत तोड़ो समाज को, हमें जुड़ने भी कब दिया। जब जब जुड़े तब तब तोड़ा गया’ आचार्य जी ने कहा की मंदिर बड़ा बनाना से कुछ नहीं होता मन बड़ा होने से सब कुछ हो सकता है। लोगों को छोटी छोटी बातों से दुखी हो रहे हैं। जीवन में अपने आप को बड़ा समझो क्योंकि आप अपने आप को पहचान ही नहीं पाते हो। भगवान ने आपको सब कुछ दिया है। भगवान राम बनना बहुत मुश्किल है। जिन्होंने 14 साल का बनवास काटा। कृष्ण बनाना भी मुश्किल काम हैं जिन्होंने गायें चराई कितने दुख झेले, पीएम मोदी बनाना भी आसान नहीं है जिसके लिए बीवी को छोड़ना पड़ता है। आचार्यजी ने कहा कि पुलक सागर बनाना भी बहुत मुश्किल है। शाम के समय गांधी मूर्ति पर गुरुदेव की आनंदयात्रा और आरती की गई।
लोग छोटे-छोटे दुख के कारण कर लेते हैं आत्महत्या
आचार्य पुलक सागरजी ने कहा कि आजकल लोग छोटे छोटे दुख के कारण आत्महत्या के बारे में सोचते हैं। जीवन अनमोल है, इसे जीना सीखें। आचार्य ने बाज के जीवन की कहानी सुनाते हुए कहा की उसका कितना बड़ा संघर्ष है जिसके बाद भी वह मरने का नहीं जीने के लिए संघर्ष करता है। बाज की उम्र 80 साल की होती है। जब 40 साल की उम्र होती है तो उसकी चोंच मुड़ जाती है खाना नहीं खा सकता। पंख भारी हो जाते हैं जिससे उड़ नहीं सकता और पंजा इतना कमजोर हो जाता है कि पकड़ नहीं सकता । उसके बावजूद वह अपनी चोंच को पत्थर पर मार मार कर तोड़ता है। खून निकलता है लेकिन चोंच तोड़ लेते हैं उसके बाद नई चोंच आने में 49 दिन लग जाते हैं। उसके बाद इस तरह पंख और पैर तोड़ता है और उनको भी नए आने में 50-50 दिन लग जाते हैं। इस तरह बाज नई जिंदगी शुरु करने के लिए 150 दिन भूखा रहता है और संघर्ष कर फिर से आसमान में उड़ने लग जाता है। आचार्य ने कहा कि बाज की कहानी को जीवन सिख लो कभी दुखी नहीं हो पाओगे।
यह जानकारी मुनि सेवा समिति के महामंत्री महावीर बोरा ने दी।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
