आजादी के महानायक क्रांतिवीर तात्या टोपे - पूर्व विधायक भारती
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Saturday, April 18, 2020
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और अंग्रेजों के खिलाफ भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महानायक रामचन्द्र पांडुरंगराव येवलेकर अर्थात तात्या टोपे का आज बलिदान दिवस है। अपनी वीरता और रणनीति के लिये विख्यात महानायक तात्या टोपे का जन्म 1814 में येवला ग्राम में एक देशस्थ कुलकर्णी परिवार में हुआ था। तात्या अपने माता-पिता श्रीमती रुक्मिणी बाई व पाण्डुरंगराव भट्ट मावलेकर की एकमात्र संतति थे। तात्या का परिवार सन 1818 में नाना साहब पेशवा के साथ ही बिठूर आ गया था। अंग्रेजों द्वारा हर कदम पर भारत और भारतीयों के विरुद्ध खेली जा रही चालों के विरुद्ध एक देशव्यापी अभियान संगठित रूप से चलाने में नाना के साथ तात्या का एक बड़ा योगदान था। यह अभियान 1857 के संग्राम से काफी पहले से आरम्भ होकर तात्या टोपे की मृत्यु तक निर्बाध चलता रहा। 1857 की क्रांति में तात्या टोपे ने ‘गुरिल्ला युद्ध‘ का श्रीगणेश कर आजादी की लड़ाई को अपनी शहादत तक निरन्तर रखा।
तात्या टोपे के साहसपूर्ण कार्य और विजय अभियान रानी लक्ष्मीबाई के साहसिक कार्यों और विजय अभियानों से कम रोमांचक नहीं थे। रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध अभियान जहां केवल झांसी, कालपी और ग्वालियर के क्षेत्रों तक सीमित रहे थे वहां तात्या एक विशाल राज्य के समान कानपुर से राजपूताना और मध्य भारत तक फैल गए थे। कर्नल ह्यूरोज, जो मध्य भारत युद्ध अभियान के सर्वेसर्वा थे, ने यदि रानी लक्ष्मीबाई की प्रशंसा ‘उन सभी में सर्वश्रेष्ठ वीर‘ के रूप में की थी तो मेजर मीड को लिखे एक पत्र में उन्होंने तात्या टोपे के विषय में यह कहा था कि वह ‘भारतीय आजादी के युद्ध के नेता और बहुत ही विप्लवकारी प्रकृति के थे और उनकी संगठन क्षमता भी प्रशंसनीय थी।‘ तात्या ने अन्य सभी नेताओं की अपेक्षा शक्तिशाली ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया था। उन्होंने शत्रु के साथ लंबे समय तक संघर्ष जारी रखा। जब स्वतंत्रता संघर्ष के सभी नेता एक-एक करके अंग्रेजों की श्रेष्ठ सैनिक शक्ति से पराभूत हो गए तो वे अकेले ही विद्रोह की पताका फहराते रहे। उन्होंने लगातार नौ महीनों तक उन आधे दर्जन ब्रिटिश कमांडरों को छकाया जो उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। वे अपराजेय ही बने रहे। तात्या टोपे अंग्रेज सेनापतियों को नाकों चने चबवाते रहे। उदाहरण है उत्तर में अलवर से लेकर दक्षिण में नयापुरा तक तथा पश्चिम में उदयपुर से लेकर पूर्व में सागर तक का इतिहास।
तात्या के व्यक्तित्व में विशिष्ट आकर्षण था। जानलैंग ने जब उन्हें बिठूर में देखा था तो वे उनके व्यक्तित्व से प्रभावित नहीं हुए थे। उन्होंने तात्या के विषय में कहा है कि वह ‘औसत ऊंचाई, लगभग पांच फीट 8 इंच और इकहरे बदन के किंतु दृढ़ व्यक्तित्व के थे। देखने में सुंदर नहीं थे। उनका माथा नीचा, नाक नासाछिद्रों के पास फैली हुई और दांत बेतरतीब थे। उनकी आंखें प्रभावी और चतुरता से भरी हुई थी। जैसी कि अधिकांश एशियावासियों में होती हैं किंतु उसके ऊपर उनकी विशिष्ट योग्यता के व्यक्ति के रूप में कोई प्रभाव नहीं पड़ा।‘
‘बाम्बे टाइम्स‘ के संवाददाता ने तात्या से उनकी गिरफ्तारी के पश्चात भेंट की थी और 18 अप्रैल 1859 के संस्करण में लिखा था कि- ‘‘ तात्या न तो खूबसूरत हैं और न ही बदसूरत, किंतु वह बुद्धिमान हैं। उनका स्वभाव शांत और निर्बाध है। उनका स्वास्थ्य अच्छा और कद औसत है।
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