आचार्य पुलक सागर जी ने भारत नाम को लेकर सोशल मीडिया पर मुहिम चलाने का उद्घोष किया


 बांसवाड़ा -क्रांतिकारी संत  आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा सुप्रीम कोर्ट में इंडिया का नाम बदलकर भारत कहने की मांग को लेकर अर्जी दी गई है। जिसके बाद इस मसले पर साधु संत भी भारत के नाम के लिए समर्थन में आ गए हैं। संतों का कहना है की इंडिया हमें दासता  की याद दिलाता है। इसलिए अब इसे भारत के नाम का ही दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही संतों ने तो यहां तक कहा कि अग्रेजों द्वारा दिए गए हर राज्य के नाम को भी बदलने की आवश्यकता है। आचार्य ने कहा इसके लिए सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाया जाना चाहिए।
हमें वो सभी नाम बदलने चाहिए जो दास्तां की ओर ले जाते हैं : मैं सहमत ही नहीं हूं बल्कि कई सालों से प्रयास भी कर रहा हूं कि भारत का नाम इंडिया नहीं होना चाहिए। । इंडिया हमें केवल दासता की याद दिलाते हैं। जब जब हम भारत बोलते हैं तो हमें भरत चक्रवर्ती की स्म्रती आती है। इंडिया दासता की भाषा है जो अंग्रेजों की ओर से दिया गया नाम है। इसलिए हमें वो सभी नामों पर विचार करना चाहिए जो हमें दास्तां की ओर ले जाते हैं। अग्रेजों की ओर से दिए गए राज्यों के नाम, शहर के नाम सभी को बदलने की आवश्यकता है। हमें अग्रेजों से तो स्वतंत्र हो गए अब उनके द्वारा दिए गए नामों से भी स्वतंत्र हो जाना चाहिए। क्योंकि अब हम स्वतंत्र भारत में हैं किसी गुलाम देश में नहीं हैं।
आचार्य विद्या सागर जी महाराज  भारत की सांस्कृतिक धरोहर बचाने की बात कही  पुलक सागर जी
    आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा मैं आचार्य श्री  विद्या सागर जी महाराज के साथ कई सालों से साथ रहा हूं। उन्होंने अपने प्रवचनों में हर बार भारत की सांस्कृतिक धरोहर बचाने की बात कही है।  वास्तव में भारत  देश  से ही हमारी पहचान है। हमें मूल नाम में बदलाव नहीं करना चाहिए। अन्य किसी भी देश में इस तरह दो नाम नहीं है फिर क्यों हमारे दो नाम को प्रचलन है। इंडिया का नाम वास्तव में दासता की मानसिकता को दर्शाता है। भारत को इंडिया कहने के पीछे बहुत बड़ी नीति थी। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में जाहिल लोगों के लिए इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया गया है। पूर्व में भी अंग्रेजों ने नाम बदले है जैसे दिल्ली को डेल्ही, चेन्नई को मद्रास, मुम्बई को बम्बई कर दिया था, लेकिन बाद में इनका नाम बदला गया।
         संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी

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