भिंड-शहर के दिगंबर जैन चैत्यालय मंदिर में विराजमान राष्ट्र संत विराग सागर जी महाराज का 58 वां जन्मोत्सव शनिवार को देश भर के विभिन्न शहरों में मनाया गया। इस अवसर पर गणाचार्य ने कहा कि अहिंसा, व्यसन मुक्ति, शाकाहार, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ एवं स्वच्छता अभियान अच्छे समाज के मूल आधार हैं। इसीलिए इस अभियान के तहत देश भर में 27 लाख लोगों को संकल्पित कराया गया है। श्रद्धालुजन द्वारा अपने- अपने घरों पर गणाचार्य चित्र स्थापित कर पूजन आरती की गई तथा विश्व शांति, निरोगी काया और सबके कल्याण की कामना की गई। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों द्वारा जरूरतमंदों को खान- पान सामग्री वितरित की गई।
संघ साधकों के बीच गणाचार्य विराग सागर जी महाराज ने कहा कि आत्मा का जन्म- मरण नहीं होता। दस प्राणों के संयोग का नाम जन्म तथा वियोग का नाम मरण है। उन्होंने कहा कि जैनाचार्य जिनसेन महाराज ने आदिपुराण में कहा कि जन्म भी दो प्रकार से होता है प्रथम शरीर का दूसरा धर्म का। शरीर का जन्म तो मरण सहित होता है फिर खुशी किसकी तथा प्रतिक्षण मृत्यु भी है तो दु:ख किसका।
प्रभु की भक्ति में रम जाओ, कल्याण हो आएगा
गणाचार्य विराग सागर जी महाराज ने साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सम्यक भाव रखते हुए आत्म कल्याण के लिए भगवान की भक्ति करना चाहिए। जितने भी महापुरुष हुए उन सभी ने आत्म कल्याण के लिए प्रयत्न किया तो मोक्ष रूपी अनंत सुख प्राप्त कर लिया। उन्होंने कहा कि हम केवल अपने तीर्थंकर प्रभु दिगंबर गुरुओं का जन्मोत्सव मनाते है तो उनके किए गए उपकारों के प्रति कृतज्ञता गुण को उनकी पूजा अर्चना वन्दना करके विकसित कर लेते हैं। यह उदाहरण भी प्रकट करते है कि अन्य भी सुसुप्त व्यक्ति भी अपनी धार्मिक श्रद्धा भक्ति को जगाए, समय का, योग का, सदुपयोग करें। बताना होगा कि गणाचार्य ने जब अपने शिष्यों को संबाेधन दिया तो उन्होंने कोरोना संक्रमण काल की वजह से सोशल डिस्टेंस पर जोर देते हुए शिष्यों को भी दूर-दूर बैठाया। गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के जन्मोत्सव पर धार्मिक कार्यक्रमों के साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों ने गरीबों और जरूरतमंदों को राशन और भोजन सामग्री बांटी गई। साथ ही जैन समाज के सिद्धांतों पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया।
1989 में भिंड में दीक्षाएं दी और 1992 में आचार्य पद मिला
1989 में भिण्ड में गुरुदेव विमलसागर जी महाराज की आज्ञा से आपने दो दीक्षाएं दीं। उस समय भिण्ड में विराजमान आचार्य वीर सागर ने समाज को आपको आचार्य विरागसागरजी महाराज के नाम से संबोधित करने का संकल्प कराया। तभी से आपकी ख्याति आचार्य विरागसागर जी के नाम से प्रारंभ हो गई और 1992 में आचार्य विमलसागर जी की आज्ञा और आचार्य सुमित सागरजी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की सहमति से द्रोणगिरि सिद्ध क्षेत्र पर लगभग 20 हजार के जन समूह की उपस्थिति में पं. दरवारी लाल जी कोठिया सहित अन्य विद्वानों ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया। अनुशासन, वात्सल्यता, संगठन की कुशलता, समता, धैर्यता, आकर्षित व्यक्तित्व से प्रभावित 230 जीव शिष्यत्व ग्रहण कर आपकी छत्र छाया में संयम की आराधना कर अपना मोक्षमार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। 9 आचार्य, 4 गणिनी आर्यिका, 89 मुनि, 71 आर्यिका, 5 एलक, 23 क्षुल्लक, 29 क्षुल्लिका के विशाल चतुर्विध संघ के संघाधिपति हैं।
आचार्यश्री को भिंड से है विशेष लगाव
दमोह जिले के पथरिया गांव श्यामदेवी- कपूरचंद्र के घर 2 मई 1963 को जन्मे गणाचार्य का भिंड से विशेष लगा रहा है। इनका नाम अरविन्द रखा गया और परिजन टिन्नू कहकर बुलाते थे। अच्छे बुरे संस्कार इस जीव के साथ आते-जाते हैं जिनके पूर्व भवों के अच्छे संस्कार होते हैं वह बचपन से ही परिलक्षित होने लगते हैं ऐसे जीव बड़े ही पुण्यात्मा होते हैं। टिन्नू जी का बचपन देखें तो वह उनके जीवन के भविष्य का प्रदर्शन था। बचपन में सबको प्रिय लगने वाले टिन्नू जी को गांव की एक महिला घुमाने के बहाने बाग में ले जाती थी वहां उनके सिर पर मुकुट बांधकर भगवान कृष्ण के रूप में मानकर उनके सामने नृत्य गान करती थी उस समय जो टिन्नू जी को भगवान रूप मानती थी वही टिन्नू (अरविन्द) आज वह गणाचार्य विरागसागर जी महाराज बनकर धरती के देवता के रूप में समाज के कल्याण के साथ अपना आत्म कल्याण कर रहे हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी