बांसवाड़ा-मोहन कॉलोनी स्थित भगवान आदिनाथ मंदिर में आचार्य पुलक सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से बताया कि आदमी बड़ा नासमझ है। दूसरों के विषय में बहुत जल्दी निर्णय ले लेता है किसी को भगवान समझने लगते हो तो कुछ समय बाद उसे शैतान समझने लग जाते हो। तुम्हारी श्रद्धा बहुत उथली है, बहुत कमजोर है। श्रद्धा नाभि से नहीं फूटी है, प्राणों से नहीं जन्मी है, वह इतनी उथली है कि कभी भी पलट जाती है। एक पल में गुरु अच्छा हो जाता है, सिद्ध हो जाता है और अगर वह गुरु तुम्हारे बारे में कड़वे शब्द बोल दें तो फिर उनकी आलोचना पर उतर जाते हो। आचार्य जी ने कहा कि एक बार गुरु मान लिया तो फिर कभी उसकी आलोचना मत करो। उनकी कमी मत देखो, उनके आदेशों की पालना करो। आचार्य जी ने कहा कि गुरु बनाने से पहले अच्छी जान पहचान लो कि मैं प्रणाम करने के लायक हूं या नहीं, दूसरों की सुनी सुनाई बातों में आकर एकदम से प्रणाम मत करो। दूसरे प्रणाम करें तुम मत करो। पहले अच्छी तरह जांच पड़ताल कर लो कि मैं काबिल हूं या नहीं। मेरे पास पड़ोस वालों से थोड़ा मेरे बारे में थोड़ी सी जानकारी हासिल कर लो और फिर निर्णय करो कि गुरु बनने लायक हूं या नहीं। आचार्य जी ने कहा कि संत के द्वार पर यह सोच कर मत जाना कि वह तुम्हें आज सम्मान देगा वरना मामला गड़बड़ हो जाएगा।
आचार्य जी ने कहा कि संत बड़े दयालु होते हैं। तुम्हारे कल्याण के लिए तपस्या करते हैं। साथ ही आचार्य ने संवेदना जताते हुए कहा कि माल गाड़ी से जिन श्रमिकों की जीवन लीला समाप्त हो गई उन श्रमिकों के प्रति संवेदनशील हूं। मैं विशाखापट्टनम में जहरीली गैस के रिसाव से जिन लोगों की मौत हो गई मैं उनके लिए संवेदनशील हूं। सीमा पर जो शहीद हो रहे हैं उन शहीदों के लिए में संवेदनशील और गर्व से भरा हूं। पूरे देश में कोरोना की महामारी है चारों तरफ से त्राहि-त्राहि मची हुई है। हम एक बार सच्चे मन से सच्चे हृदय से अपने आराध्य से प्रार्थना करें विश्व में शांति हो जगत का कल्याण हो प्राणियों में सद्भावना हो।
संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी