जिनके वचन शुद्ध होते हैं, वे सिद्ध हो जाते हैं : अनुभव सागर जी

बांसवाड़ा-कॉमर्शियल कॉलोनी स्थित संत भवन में विराजमान आचार्य अनुभव सागर  जी महाराज ने प्रवचनों के माध्य्म से कहा कि अपने वचनों का उपयोग दूसरों के  हित के लिए करते हैं, मौन की साधना करते हैं, उन्हें किसी भी सिद्धि की  आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन संतुलित प्रवृत्ति के कारण वचन अपने आप सिद्ध  हो जाया करते हैं।
आचार्यश्री ने कहा जिन्होंने हमारा पथ प्रदर्शन किया  है, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का मार्गदर्शन किया। ऐसे मोक्ष  मार्ग के नेताओं को अर्थात श्रमण साधकों को नमस्कार करता हूं। क्योंकि  संसार के नेता तो कभी भी अपना दल बदल कर चुनाव जीत भी जाते है। तो भी  उन्हें एक समय के बाद कुर्सी छोड़नी पड़ी है। 
आचार्यश्री ने कहा प्रभु को  नमस्कार करने का उद्देश्य लौकिक नहीं होना चाहिए वहां भिखारी बनकर नहीं,  पुजारी बनकर जाना चाहिए। प्रभु की पूजा से भक्ति से जब उनके जैसे गुणों की  प्राप्ति की जा सकती है तो फिर हम संसार की तुच्छ वस्तुओं का आग्रह क्या कर  रहे है। आचार्यश्री ने कहा हमारी भक्ति में वह मर्म वह शब्द होने चाहिए की  भक्ति का प्रभाव हमें भक्त से भगवान बना दे, पर वह तभी संभव है जब हमारे  वचन प्रत्येक जीव के लिए हित प्रिय हो। आचार्यजी ने कहा कि कितना बोलते हैं  यह मायने नहीं रखता। कब क्यों क्या कितना बोलना है अगर यह कला आ जाए तो हम  कभी किसी को बुरे नहीं लगेंगे। वचन को शुद्ध करो तो अपने आप वचन की सिद्धि  हो जाएगी।
         संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी
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