बांसवाड़ा-बाहुबली कॉलोनी स्थित सुमतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य पुलक सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से बताया कि आदमी बेसहारा, असाहय, पराधीन है। यही वजह है कि आदमी की उम्मीद टूट जाती है, जिससे सहारा ढूंढने में आदमी का पूरा जीवन लग जाता है। आचार्यजी ने कहा कि जब आदमी दुनिया से चला जाता है तो इतना बेसहारा हो जाता है कि उसे चिता तक भी चार लोगों द्वारा ले जाया जाता है। जब इंसान की कमर टूट जाती है तो वह लकड़ी का सहारा लेता है, जब इंसान की उम्र टूटती है तो वह लड़कों का सहारा लेता है। भूख लगती है तो रोटी का सहारा लेता है। जब रास्ते पर भी चलता है तो किसी केे कंधे पर हाथ रखकर सहारा लेता है। आचार्यजी ने कहा कि आदमी न जाने जीवन में किस किस का सहारा लेता है। इतने सहारे बनाने के बाद भी अंतिम समय में उसका कोई सहारा नहीं हुआ। आचार्यजी ने कहा जीवन में तुम इतने सहारे बनाते हो लेकिन एक बार उस परमात्मा को भी सहारा बनाकर देख लो फिर तुम्हें किसी सहारे की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बल्कि सारी दुनिया तुम्हे सहारा बना लेगी। आचार्य जी ने कहा कि भगवान को सहारे बनाने के लिए आपको कुछ नहीं करना होता है। ना ही कोई अनुष्ठान करवाने की जरूरत है। ना ही किसी तरह के खर्च की आवश्यकता होती है। भगवान तो उसी का सहारा बनता है जो समर्पण भाव रखता है, प्रेम रखता है, दया भाव रखते हैं। आचार्यजी ने कहा कि यह भी नहीं देखा गया होगा की मुर्दा आदमी डूबता है वह हमेशा तैरता है। डूबता केवल जिंदा आदमी है, क्योंकि जिंदे व्यक्ति में अहंकार होता है। लेकिन मुर्दे में समर्पण भाव होता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
