बांसवाड़ा-हाउसिंग बोर्ड दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री पुलक सागरजी महाराज ने अपने मांगलिक उद्बोधन में कहा कि चीन में कोरोना वायरस फैलने से सभी कॉ यह सीख मिली है कि शाकाहार और सात्विक आहार ही मानव के लिए सर्वोत्तम है। उन्होने कहा जैन धर्म में सदैव से शाकाहार पर ही जोर दिया जाता है। “अहिंसा परमो धर्म” जैन धर्म का आधारभूत सिद्धांत है। यह कहा जाए कि विश्व भर में शाकाहार को बढ़ावा देने में जैन धर्म का सर्वाधिक योगदान रहा है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जैन थाली अम्रत की प्याली है
आचार्य श्री जी ने कहा कि कुछ पश्चिमी देशों ने जैन धर्मावलंबियों की शाकाहार की इस अवधारणा को स्वीकार किया है। शाकाहारी सर्वोत्तम भोजन है और जैन थाली अमृत की प्याली है।
आचार्य श्री ने कहा कि हमारे पड़ोसी देश चीन में मांसाहार के चलते कोरोना वायरस के संक्रमण जैसी वैश्विक महामारी फैलने से वहां चार करोड़ लोगों के बीमार पड़ने और करीब कई हजार लोगों की मौत के बाद अब पूरी दुनिया मांसाहार को खारिज करते हुए कहने लगे हैं कि जैन थाली ही अमृत की प्याली है। आचार्यश्री ने कहा कि चीनी समुदाय की मांसाहार की प्रवृत्ति ही उनके लिए जानलेवा साबित हुई। चीनी भोजन में शाकाहार नहीं के बराबर होता है। हम देश के कीट पतंगों और जीवों को विषैला मानते हैं, उन्हें वह अपने भोजन का अभिन्न अंग बनाने के लिए जाने जाते हैं। इन हालत में वहां कोरोना वायरस जैसी बीमारी तो फैलनी ही थी।
शांति का लक्ष्य अहिंसा से ही सिद्ध किया जा सकता है। आचार्य श्री
आचार्य पुलक सागरजी महाराज ने पुरजोर देते हुए कहा कि जगत में प्रत्येक जीव के लिए सुख का आधार शांति ही है। शांति का लक्ष्य अहिंसा से ही सिद्ध किया जा सकता है। संसार में आहार पूर्ति के लिए सर्वाधिक हिंसा होती है। जीव दया का मार्ग सात्विक आहार से ही प्रशस्त होता है। आचार्य श्री ने कहा कि सूक्ष्म अहिंसा तो कहीं सजीव पदार्थों में भी संभव है।
सचमुच ऐसे मार्मिक उद्गार आज वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे बहुत ही प्रासंगिक है जो सचमुच ह्रदय कॉ झ्कझोर देती है
संकलन अभिषेक जैन लूहाडीया रामगंजमंडी
