दमोह -मृत्यु भोज तो समाज में होना ही नहीं चाहिए, लोग इस भोज को लेकर शादी विवाह की तरह बड़ी-बड़ी पार्टी करने लगे, गुंजाइश न होने पर भी उनके परिवारजनों को ऋण लेकर समाज के लोगों को भोजन कराना पड़ता है, यह उद्गार वैज्ञानिकाचार्य श्री 108 निर्भय सागर महाराज ने कहे उन्होने कहा एक तरफ लोग उत्साह से भोज करते हैं, दूसरी तरह तरफ परिवार का वह सदस्य व्यथित होता है, जिसका अपना गया है और उसका भोज कराने में उसने कर्ज तक लिया है। इस भोज को बंद करके व्यक्ति यदि समक्ष है तो किसी गाेशाला में असहाय पशुओं और गरीबों को दाना-पानी उपलब्ध करा दे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी -
