सागर -जीवन में दोष और गुण संगति के कारण आया करते हैं। सज्जन की संगति से सद्गुण एवं दुर्जन की संगति से दुर्गुण आया करते हैं। दुर्जन जहां भी जाता है वहां कलह अशांति पैदा करता है, इसलिए हमें दुर्जन की संगति से बचना चाहिए। सज्जन की संगति करनी चाहिए क्योंकि सज्जन की संगति से क्लेश ,कलह, आकांक्षाएं एवं पाप नष्ट होते हैं। यह बात महावीर दिगंबर जैन मंदिर नेहानगर में विराजमान मुनिश्री कुंथु सागर जी महाराज ने धर्म उपदेश देते हुए कही। उन्होंने कहा कि सज्जन, सुंदर स्त्री से भी अधिक सुख देने वाला होता है। सज्जन नदी के समान परोपकारी होता है। जैसे वृक्ष छाया और फल दोनों प्रदान करता है वैसे सज्जन सामाजिक एवं धार्मिक दोनों प्रकार के गुणों को प्रदान करता है। संगति का जीवन पर बहुत असर पड़ता है। जैसी संगति होती है वैसी ही व्यक्ति की मति होती है। और जैसी मति होती है वैसे ही उसकी उसकी अग्रिम गति होती चली जाती है। सोना, सज्जन और साधुजन यह कितनी बार भी टूट करके जुड़ जाया करते हैं लेकिन दुर्जन कुम्हार के घड़े के समान होते हैं एक बार टूटने के बाद कभी भी पुनः नहीं जुड़ सकते। इस निमित्त को हमें स्वीकारना चाहिए और दुर्जनों की संगति से बचकर सज्जनों की संगति करनी चाहिए। जैसे पत्थर की नांव से नदी पार नहीं की जा सकती वैसे ही दुर्जन की संगति से शांति प्राप्त नहीं हो सकती। शकुनी जैसो की संगति करने से सारे शकुन भी अपशकुन में परिवर्तित हो जाते हैं और कृष्णजी की संगति करने से सारे अपशकुन शकुन में परिवर्तित हो जाते हैं। शकुनी अशांति चाहता था और कृष्ण जी शांति चाहते थे अंत में अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने अर्जुन के लिए धर्म का रास्ता दिखाया। इसलिए आज उनकी संगति सभी के लिए एक आदर्श बन गई है। किसी का नाश अज्ञान से होता है, किसी का आलस्य से तो किसी का अभिमान से, लेकिन इतिहास को देखें तो सबसे ज्यादा पतन कुसंगति के कारण हुआ है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी