दया ही जीवन का श्रृंगार मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज

 मदन गंज किशनगढ़-मुनि श्री विद्यासागर  जी महाराज ने सिटी रोड स्थित जैन भवन में धर्मोपदेश देते हुए कहा कि दया का होना जीव विज्ञान का सम्यक परिचय है। जीव दया की दृष्टि से ही जमीकंद खाने के लिए मना किया गया है। मुनिश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि वासना का बढ़ना मोह एवं दया का विकास मोक्ष है। वासना जीवन को जलाती है और दया जीवन को जीवंत कर देती है। दया ही जीवन का श्रृंगार है। जीवन में उद्देश्य को समझकर आनंदमय जीवन यापन करना चाहिए। वासना का क्षेत्र शरीर पर आश्रित होता है, वही दया व करुणा का कार्यक्षेत्र अनंत होता है। मुनिश्री ने कहा कि संवेदनशील जीवन जिस व्यक्ति की चर्या में है वह व्यक्ति हमेशा इस बात से जागरूक रहता है कि मन, वचन व काया से किसी भी जीव को पीड़ा नहीं पहुंचे। दूसरों को पीड़ा पहुंचा कर लक्ष्य प्राप्त करना उचित नहीं है। चेहरा हृदय का दर्पण होता है। अच्छी वस्तु सबको सुख देती है। मनुष्य अनुकंपा के कारण दूसरों का दुख नहीं देख पाता है। श्री आदिनाथ दिगंबर जैन पंचायत के तत्वावधान में चल रहे अध्यात्मिक ज्योति पावन वर्षायोग के तहत जैन भवन में संत शिरोमणि आचार्य  श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा रचित मूकमाटी ग्रन्थ का वाचन करते हुए मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया
  *संजय जैन किशनगढ़ से प्राप्त जानकारी के अनुसार*
   संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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