व्यक्ति स्वयं के गुस्से से स्वयं दुख देते है समता सागर जी

 विदिशा-"जे करम पूरब किये खोटे, सहे क्यों नहीं जीयरा,अति क्रोधअग्नि बुझाय प्राणी, सम्य-जल ले सीयरा"आप सभी ने दशलक्षण धर्म पूजन की ये पक्तियां कविवर श्री धानतराय जी की पड़ी है, इन पक्तियों में कर्म सिद्धांत की विशेष विवेचना है, उपरोक्त उदगार मुनि श्री समतासागर जी महाराज ने शीतलधाम विदिशा में पर्वराज पर्युषण के प्रथम दिवस उत्तम क्षमाधर्म पर  व्यक्त किये।
उन्होंने प्रश्न करते हुये कहा कि किसके जीवन में क्रोध के निमित्त पैदा नहीं होते? सभी महापुरुषों के जीवन में यह निमित्त आए है, लेकिन उन्होंने उन निमित्तों को पाकर उनको टाला है, तभी वह उच्च स्थान को पा सके।
उन्होंने कहा कि क्रोध के निमित्त तो आपको पल पल में मिलते है, और मिलेंगे,लेकिन उन निमित्तो को यदिआपने हंसकर टाल दिया तो वह निमित्त आपका कुछ बिगाड़ नहीं कर पाऐंगे। आप भी खुश रहेंगे और दूसरों को भी खुश रख पाऐंगे। मुनि श्री ने कहा कि व्यक्ति स्वं के गुस्सा से ही स्वं को दुख देते हैै।
इस वर्ष दशलक्षण महापर्व प्राकृतिक प्रकोप कोरोना का निमित्त  होंने के कारण महोत्सव के रुप में भले नही मना पा रहे हो, लेकिन भाव सहित घर पर ही वैठकर भक्ती पूजन और आराधना कर ली तो आपका महोत्सव मनाना सार्थक हो जाऐगा। उन्होंने कहा कि जैन परंपरा के सिद्धांतों में दशलक्षण पर्व वर्ष में तीन वार आते है, लेकिन भाद्रपक्ष के दशलक्षण पर्व का विशेष महत्व महोत्सव के रुप में रहता है,उन्होंने क्षमाधर्म की व्याख्या करते हुये कहा कि यह तो आत्मा का स्वभाव है,अन्य निमित्त मिलने पर अपने स्वभाव को छोडकर विभाव परणति में आ जाता है, उदाहरण देते हुये उन्होंने कहा कि  जैसे जल का स्वभाव शीतल होता है, लेकिन अग्नी के संयोग पाकर वह जल ऊष्ण होकर दूसरों को जला भी सकता है, लेकिन वही ऊष्ण जल जब उसी अग्नी पर पड़ता है, तो उसको बुझा भी देता है,  आत्मा का स्वभाव तो शीतल ही है, लेकिन बाहरी निमित्तो को पाकर के वह आत्मा अपने स्वभाव को छोड़कर विभाव को धारण कर लेती है,और जैसे ही वह निमित्त हटा कि तुरंत ही अपने स्वभाव में आ जाती है।उन्होंने प्रश्न करते हुये कहा कि "किसके जीवन में क्रोध के निमित्त पैदा नहीं होते" ?
कर्म सिद्धांत कहता है कि सुख दुख की सामग्री प्राणी को उसके अपने ही निमित्त से ही मिलती है, लेकिन वह उसे अपना मानता नहीं है, यही उसके दुःख का मूल कारण है। उन्होंने कहा कि सुख और दुःख निमित्त जव भी मिलेंगे आपके अपनों के पास या आपके परिचितों से ही मिलेंगे,
जिस व्यक्ती को आप जानते ही नही वह व्यक्ती  आपको दुःख दैनें नही आएगा और कभी भूल चूक वश यदि वह गलत बोल भी जाऐ तो आप उसे माफ भी कर देते हो लेकिन कोई निकटतम व्यक्ती या मित्र या रिश्तेदार यदि अच्छे से यदि कभी बात न कर पाऐ तो आप उसकी वात को गांठ बाध लेते हो, यही तो राग और द्वैष के परिणाम है, जो बिना सम्वंधों के नहीं मिलते, लेकिन जो उन प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने आपको सम्हाल कर आगे बढ़  जाता है,वही क्षमा धर्म का पालन कर सकता है,
आज क्षमाधर्म है,कल मार्दव धर्म है, इस प्रकार प्रतिदिन एक एक धर्म आएगा और अंत में उत्तम ब्रहम्चर्य धर्म का पालन कर अपने जीवन को महका सकता है। उन्होंने कहा कि शीतलधाम के प्रशस्त वातावरण में गंधकुटी में भगवान श्री आदिनाथ स्वामी को इस विशाल प्रागण में विराजमान किया गया है। सोशल डिस्टेंस के साथ यंहा पर्याप्त स्थान है,समवसरण में तो वैसे भी प्रत्येक जीव के लिये स्थान मिल ही जाता है।इसलिये जो भी आना चाहते है वह व्यवस्थित होकर कार्यकर्ताओं को सूचित कर आ सकते है, जिससे व्यवस्था बनी रहे।   उन्होंने कहा कि चातुर्मास का यह कार्य किसी एक व्यक्ती का नहीं एक समाज का नही यह तो संपूर्ण मानवता का है,इस महामारी ने भगवान महावीर का यह सिद्धांत "जिओ और जीने दो" और भी प्रासंगिक हो गया है।  देश और दुनिया के सामने अहिंसा और दया के इस सिद्धांत ने बता दिया है कि हिंसा पीड़ित इस मानवीय सभ्यता के लिये वर्तमान में भगवान महावीर के सिद्धांतों की महती आवश्यकता है।
उन्होंने उत्तम क्षमाधर्म पर प्रकाश डालते हुये कहा कि क्रोध के तो बहुत से निमित्त मिल जाते है, लेकिन यदि आप उन निमित्त को टाल जाते है, तो वही व्यक्ती महान कहलाता है।
उन्होंने कहा कि बुन्दैलखंडी में एक बात कहते है कि  "जानत भी नहीं, और मानत भी नहीं, और अपनी अपनी तानत है"
समय पर कोई कार्य हो रहा है, तो उसको तानो मत
यदि कोई बात आपको अच्छी नही लग रही तो उस समय और स्थान को छोड़ कर उससे बचा सकता है। उन्होंने कहा कि सहनशीलता का गुण जिसके अंदर विकसित हो जाता है, वह रंच मात्र भी कभी विचलित नहीं होता।
प्रवक्ता अविनाश जैन ने वताया कि पर्वराज पर्युषण के प्रथम दिवस सभी जिनालयों में सोशल डिस्टेंस के साथ दर्शन कर अपने अपने घरों पर उत्साह के साथ मनाया। ओन लाईन यू टियुब चैनल पर मुनि श्री के प्रवचन 8:45 से 10 वजे तक एवं जिनवाणी चैनल पर दौपहर दो वजे से जिनवाणी चैनल पर दस धर्म के प्रवचन का प्रसारण किया जा रहा है।
       संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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