ग्वालियर: कांग्रेस का हाथ छोड़ कमल दल के नेता बने पूर्व विधायक अब चिंता में है क्योंकि आगामी उपचुनाव में उनकी राह आसान नहीं है I राजनीतिक गलियारों में तो ये भी चर्चा है कि मुन्ना ने चुनाव न लड़ने का मन बना लिया है लेकिन हम इस बात की पुष्टि नहीं करते हैं, यदि चुनाव नहीं लड़ेंगे तो शिवराज सिंह उन्हें किसी आयोग में रख सकते हैं I
वैसे इन नेताजी ने संघर्ष बहुत किया है लेकिन विधायक पद का सुख वे केवल पंद्रह महीने ही भोग पाए, 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट पर दो बार कमल खिला जिसमें एक बार अनूप मिश्रा और दूसरी बार माया सिंह दोनों ही सरकार में मंत्री रहे लेकिन मुन्ना क्षेत्र की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए लड़ते रहे, 2013 में जीत का अंतर मात्र 1100 वोट रहा, मुन्ना के संघर्ष को जनता ने भाँप लिया था कि ये केवल जनसेवा के लिए ही राजनीति में आए हैं यही कारण रहा कि 2018 में भाजपा के जनसेवा के लिए तत्पर रहने वाले और इश्तिहारों में छाए रहने वाले सतीश सिकरवार को नकारते हुए मुन्ना को जीत का सेहरा पहनाया लेकिन मुन्ना ने जनता की भावना को ध्यान में न रखकर टिकिट देने वाले सिंधिया के कहने पर जनमत के उलट पद से त्याग पत्र देकर मुन्ना भाजपा के लाल हो गए, लेकिन मंत्रिमंडल में जगह न मिलने के बाद से उन्हें महसूस हो गया कि उनकी राह आसान नहीं है I
