बांसवाड़ा-क्रांतिकारी संत भारत गौरव आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने उद्बोधन मे कहा जब एक बेल बांस से बंधती है तो ऊपर की और उठती है और एक बाल्टी को कड़ी मे रस्सी बांध दी जाती है तो वह बाल्टी जितनी गहराई मे चली जाए वह रस्सी उसे निकाल ही लाएगी उन्होने कहा इस जीवन की बेल को धर्म के बंधन से बांध दो तो जीवन ऊपर ही उठेगा सत्य बहुत नाजुक होता है जीवन मे सत्य आ भी जाए तो उस सत्य को समय की आंधियों से बचाने के लिए अपने मन के दिए पर एक संयम का एक काँच लगा लो यह मन जिज्ञासाओ से भरा होता है कैसे मिटे मन के यह विकल्प तुम संकल्प करो विकल्प अपने आप मिटेगा
आचार्य ने कहा संयम का संयम दूसरा नाम जीवन की सुरक्षा है संयम की पटरी पर चलने वाली गाड़ी मोक्ष के स्टेशन तक पहुचती है असंयमी व्यक्ति उस कोलू के बेल के समान होता है जो चलता तो दिनभर है लेकिन पहुचता कही नहीं है ऐसे ही जिसके जीवन मे कोई नियम संयम नहीं नियम नहीं संकल्प नहीं उसके मानव जीवन की यात्रा सार्थक नहीं हो सकती उन्होने कहा संयम के जीवन के बिना जीवन की यात्रा लक्ष्य विहीन होती है
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
