आष्टा - मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ने धर्म सभा को सबोधित करते कहा शौच का अर्थ शुद्धि है। तन की नही मन की शुद्धि प्रत्येक मानव को करना चाहिए। अध्यात्म की शरण के बिना मन शुद्घ नही हो सकता। तन को नही मन को साफ करो। मन को माँजते रहो क्रोध,मान, माया, लोभ आदि विकार दूर होते चले जाएगे। केवल चेहरा ही नही उसमे हमारा चरित्र भी दिखना चाहिए। जिसने लोभ पर विजय पा ली उसने इस संसार मे सब कुछ जीत लिया।
मुनि श्री ने कहा पर्युषण पर्व के 10 धर्म हमे अनेक बाते सिखाते है कभी भी जीवन में मान या अहंकार लाना चाहिए। मान अहंकार वाला कभी जीत नही सकता औऱ न ही बड़ा हो सकता।
मुनि श्री ने कहा लोभ से बचने का उपाय सिर्फ धर्म ध्यान है। धर्म ध्यान सत्संग से ही लोभ पराजित हो सकता है। आदमी नही दौड़ता आदमी का लालच दौड़ता है। सफलता के सिद्धान्तो की हत्या न होने दे। सफलता के लिए सिद्धान्तो से समझौता उचित नही है। इंसान को केवल दो गज जमीन की आवश्यकता होती है। यह मानव तन मल से भरा हुआ घडा है। गंगा स्नान से शुद्ध नही होगा मन पवित्र बनाओ तभी इसकी शुद्धि संभव है।जहाँ विज्ञान जब सब प्रकार से विफल हो जाता है वही से आध्यत्म प्रारंभ होता है। जीवन में एक समय ऐसा भी आता है जब धर्म प्रभु स्मरण आवश्यक अनुभव होने लगता है। देह की नही मन की शुद्धि जरूरी है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
