जीवन में कुछ बनने के लिए तपन पड़ता है पुलक सागर जी

  बांसवाड़ा -आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने सबोधित करते हुए कहा जो तपता नही वह पकता नही है। सोना भी तपने के बाद निखरता है, रोटी भी पकने के बाद स्वादिष्ट होती है, ऐसे ही आत्मा जब तक तपेगी नही वह परमात्मा नही बन सकती। संसार में जितने भी महापुरुष हुए है उनका जीवन देखो कितनी तपस्या की है। एक डॉक्टर इजीनियर देखो कितनी साधना की होगी इस मुकाम तक पहुंचने में। आत्मा मे परमात्मा को देखने वाला सम्यक द्रष्टि होता है।आत्मा को शुद्धात्मा बनाने के लिए स्वयं को तपस्या की भट्टी में झोंकना पड़ता है भगवान महावीर कहते है मात्र भोजन छोड़ना ही तपस्या नही है मन पर संयम रखकर आत्म साधना करना तप होता है। उन्होंने कहा आत्मा को परमात्मा बनने के लिए मथना और तपना पड़ता है। दूध में घी किसी को नही दिखता और जिसको दिख जाता है वह उस घी को प्राप्त कर लेता है। उस दूध को घी बनने के लिए मथना पड़ता है, तपना पड़ता है।तभी घी दूध से अलग हो जाता है। जब एक बार घी दूध से अलग हो जाता है तो फिर दूध नही बन सकता, वैसे ही आत्मा को परमात्मा बनने के लिए मथना और तपना पड़ता है।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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