बिजोलिया-मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज ने धर्म सभा को सम्बोधित करते कहा पहला धर्मात्मा -जो पाप नहीं करेगा दूसरा धर्मात्मा-पाप करने के बाद सजा भुगतने को तैयार है और स्वयं को अपराधी मान रहा है इसके साथ ही धर्म की क्रिया रूप व्रत,उपवास आदि से नियम आदि से सजा काट रहा है,सजा स्वीकार हैं, हम गंदे हो गये है तो साफ होने के लिए पापो को धोने के लिए व्रत,उपवास आदि कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाने के लिए सदा प्रयास करते रहे है वही तीसरे जीव वे है जो अपराध करने के बाद सजा भुगतने को तैयार नहीं।
*षट् आवश्यक का पालन करना चाहिए*
उन्होंने कहा कि आप ग्रहस्थ है तो संसारी कार्य करने ही पड़ते जो पाप रूप हैं शुद्ध दृष्टि से जो हम क्रिया करते हैं इनमें जो दोष लगे उनके निवारण के लिए प्रतिक्रमण करें,गृहस्थ के लिए षट्आवश्यक करना पापो की सजा है,सोने से पहले अपने पापो का प्रायश्चित कर के नहा लो नही तो पाप गन्दगी हो जायेगी सद कर्म करने वाले जिस दिन स्नान अभिषेक,करके -दान,उदिष्ट बनाते खाते हैं तो भगवान की पूजन अभिषेक भी करना चाहिए
मुनि पुगंव ने कहा कि सजा ही व्यक्ति को सच्चा आदमी बनायेगी,भगवान की वाणी नही सुखी व्यक्ति संसार में ही डूबा रहता है यहाँ तक की देखने में आता है कि पुजा तक नहीं करता आप,दुखी व्यक्ति से धर्म करा सकते है आज सबसे ज्यादा मन्दिर दुखी लोगों से भरे रहते हैं
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
