दमोह -आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा शरीर किराए का मकान है,इस पर मालकियत जमाना सबसे बड़ी मूर्खता है। शरीर के नही आत्मा के मालिक बनो, आत्मा के मालिक बनने पर एक दिन सबके मालिक बन जाते है। उन्होंने कहा पत्थर के परमात्मा और मंदिर बनाना बहुत सरल है, लेकिन इस नश्वर शरीर की मालकियत छोड़कर आत्मा को परमात्मा बनाना बहुत कठिन है। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए पत्थर के मंदिर और मूर्ति बनाई जाती है। उन्होंने कहा पत्थर की मूर्ति या मन्दिर सभी वास्तु के अनुसार और प्रतिष्ठा ग्रन्थो के सिद्धान्त के अनुसार बनाना चाहिए। प्रतिमा के जो भी चिन्ह आदि लक्षण बनाए जाते है वे सब महान अर्थ लिए होते है। जैसे जैन मूर्ति पद्मासन युक्त हाथ रखी हुई होती है, जिसका अर्थ है अरिहंतो को संसार में सब कुछ भी कार्य करना शेष नहीं रह गया है। उन्होंने करने योग्य सभी कार्य कर लिया है।
उन्होंने सदोष मूर्ति की प्रतिष्ठा का फल बताते हुए कहा यदि नेत्र शास्त्रानुसार न होकर तिरछे ऊर्ध्व या अंधी दृष्टि वाले होते है तो परिवार का विनाश वह कलह होती है और समाज मे सम्मानकी कमी देखी जाती है। यदि मुख टेडा आदि होता है तो भोगों की कमी चिंता और पैतृक सम्पति का विनाश होता है। यदि प्रतिमा दुबली, पतली हीन अधिक अंग वाली होती है तो एक्सीडेंट, द्रव्य का नाश, रोग की व्रद्धि होती है। इसीलिए प्रतिया अच्छे शिल्पकार से बनाना चाहिए और वास्तु शास्त्र के ज्ञाता प्रतिष्ठाचार्य से प्रतिष्ठा करवाना चाहिए। उन्होंने कहा प्रत्येक धार्मिक क्रिया के साथ विवेक होना जरूरी है। विवेक हीन व्यक्ति के सभी कार्य निष्फल जाते है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी