बांसवाड़ा -आचार्य श्री पुलक़ सागर जी महाराज ने कहा यदि आलोक है, तो अंधकार तो होगा, प्रशंसा है तो निंदा भी होगी, जन्म है तो मरण भी होगा, सहयोग है तो वियोग भी होगा और संसार है तो मोक्ष भी होगा। अंधकार सबूत है,आलोक का और निंदा सबूत है कार्य की सफलता का। निंदक भी प्रशंसक बन सकते है, मुड़ता है तो टूट सकती है। जड़ता है तो गल भी सकती है, लेकिन सबको तोड़ने और गलाने के लिए श्रम और सम्यक पुरुषार्थ चाहिए। निंदा की जड़े बहुत गहराई तक पहुंच गई है स्वार्थ सदियों से इसे सींचे चला आ रहा है फिर भी निराश होने की जरूरत नही है। निंदक बिना पैसे का नोकर है, जो 24 घण्टे सावांचेत रहता है और हमें होशियार रहने की सूचना देता है।
उन्होंने कहा जैसे संस्कार गुरु ने दिए वैसे ही भक्त आचरण करेगा। यदि चित्र गलत बना तो उसमे चित्र का क्या दोष दोष चित्रकार का है। जैसा गुरु वैसा चेला, दोनो नरक में ठेलम ठेला। ज्ञानी पुरुष किसी की निंदा नही करता और निंदा करता भी है तो स्वयं की करता है। लेकिन अज्ञानी दुसरो की निंदा करता है, दुसरो की कमियां खोजता है, दुसरो की बुराई खोजता है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी
