अशोकनगर - मुनि श्री निर्णय सागर जी महाराज ने क्षमा पर प्रकाश डालते हुए कहा भारतीय परंपरा में क्षमा का बहुत बड़ा स्थान है और यह क्षमावाणी पर अनादि काल मनाया जाता है।
उन्होंने कहा हमे कभी भी ऐसा नही समझना चाहिए कि क्षमा कमजोर लोग मांगते है। क्षमा तो वीर बहादुर लोगो का आभूषण है जब साधक 10 दिन तक धर्म और परमात्मा की आराधना करता है और अपनी आत्मा को धर्म से ओतप्रोत कर देता है ऐसे परिणामो के होने पर उसके मन में न कोई क्रोध होता है, न कोई घमंड होता है न उसमे कोई छलकपट होता है और न ही उसकी आत्मा में किसी प्रकार का लोभ लालच होता है। पूर्व में किसी से झगड़ा हो गया हो, अपशब्दों का प्रयोग हो गया हो या किसी के मन को दुखाया गया हो तब पूर्ण पवित्र मन से वह दूसरों से क्षमा याचना करता है।
क्षमा करें और क्षमा मांग ले, जीत इसी में, हार नही
मुनि श्री ने कहा रावण ने सीता का हरण किया था। राम लक्ष्मण ने सीता जी को प्राप्त करने के लिए लंका की और प्रस्थान किया। इस प्रसंग मे उनके दुश्मन भी मित्र बन गए फिर राम के पास एक बडी सेना रावण से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गई किंतु राम ने अपनी शक्ति का अहंकार नही किया। रावण की शक्ति होने पर भी सम्मानीय वचनों के साथ रावण के पास संदेश भेजा कि मुझे आपसे कोई बैर भाव नही है। मुझे आपकी सोने की लंका भी नही चाहिए। बस आप हमारी सीता लोटा दो और राम ने सीता को प्राप्त कर लिया युद्ध भी किया किंतु राम ने रावण से मरने से पूर्व एवं मरने के बाद भी कोई बैर नही रखा यह होती है वीर पुरुषों की उत्तम क्षमा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
