मन के संकल्प विकल्प को ज्ञान दूर करता है -विराग सागर जी

भिण्ड-परम पूज्य गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि मन के संकल्प विकल्प को ज्ञान दूर करता है संकल्प अभिमान को उत्पन्न करता है दूसरे की कुछ न मानना और स्वयं को श्रेष्ठ मानना अहंकार है ममकार यानी ये मेरे है शास्त्र स्वाध्याय से मै पना अहंकार भी साधना में विकल्प उत्पन्न करता है साथ न कुछ आया न जाएगा एक नाम मिटाकर दूसरा नाम लिखा जाता है अतः चक्षु खोलो कौन अपना है कौन पराया है केवल मोह की माया है राग द्वेष में आकर अपना पराया पन में फसता है अतः में कोई हमारा नहीं है ज्ञान उत्पन्न होते ही मोह के बंधन कमजोर पढ़ जाते है घाटा फायदा में कोई अंतर नहीं है रटी हुई विद्या आचरण में नहीं आती क्योंकि वह परायी है आत्मा में परमात्मा निवास करता है ज्ञान मानकर आत्मज्ञान करे तो शास्त्र स्वाध्याय सार्थक है। अच्छाई धारण करे बुराई त्यागे यही जिनवाणी का सार है
उपरोक्त जानकारी राजकुमार अजमेरा कोडरमा ने दी
      संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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