2 अप्रैल 2018 की घटना सभी को याद है, साथ ही याद है माई के लाल को लेकर दिया गया शिवराज सिंह चौहान का वो बयान, जिसने आज तक शिवराज का पीछा नहीं छोड़ा. साल 2015 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के एक कार्यक्रम के दौरान कह दिया कि इस देश में कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता. दरअसल इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह कहकर बहस खड़ी कर दी थी कि आरक्षण पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. इसे लेकर आरक्षित वर्ग ने विरोध भी दर्ज कराया.
मोहन भागवत के इस बयान और शिवराज सिंह चौहान की माई के लाल की प्रतिक्रिया के चलते आरक्षित औऱ अनारक्षित वर्ग दोनों बीजेपी से दूर होने लगे. 2 अप्रैल 2018 को आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई थी, इसमे ग्वालियर में 3, भिंड में 2 और मुरैना में 1 शख्स की मौत हुई.
भारत बंद के दौरान पहले भीम सेना और बजरंग दल आपस में भिड़े, जिसके बाद पुलिस और अराजक तत्वों में जमकर भिड़ंत हो गई. इसके बाद राज्य सरकार के खिलाफ आरक्षित और अनारक्षित दोनों ही वर्ग नाराज़ हो गए. बीजेपी के आंतरिक सर्वे की एक रिपोर्ट कहती है कि चंबल में बीजेपी के हारने की एक अहम वजह यही थी कि दोनों वर्ग मुख्यमंत्री शिवराज और पार्टी दोनों से नाराज़ थे औऱ इसमें ज़्यादातर वोट या तो बीएसपी को गया या फिर कांग्रेस को.
कांग्रेस जब सत्ता में आ रही थी तो ये वादा करके आई थी कि सरकार बनने के बाद क्षेत्र में 2 अप्रैल की हिंसा के दौरान जिन भी आरक्षित वर्ग के लोगों के ऊपर एफआईआऱ हुई है वो वापस ले ली जाएगी. लेकिन 15 महीने की सरकार में इसे लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया.
जाहिर है कि इससे वर्ग विशेष नाराज़ है और आने वाले चुनावों में कांग्रेस को इसका नुकसान हो सकता है, और मुमकिन है कि वोटबैंक का कुछ हिस्सा बहुजन समाज पार्टी के खाते में चला जाए. अगर ऐसा होता है तो कोई बडी बात नहीं है कि 16 सीटों के उपचुनाव में कुछ सीटों पर बहुजन समाज पार्टी के विधायक जीतकर विधानसभा पहुंच जाएं.
बीजेपी के लिए भी चुनौती बड़ी होगी क्योंकि दोनों वर्ग विशेष आरक्षण के मुद्दे और 2 अप्रैल की हिंसा के मामले में उससे नाराज़ है, लेकिन बीजेपी के लिए अच्छी बात ये भी है कि ये वर्ग कांग्रेस से भी खुश नहीं हैं. तो दोनों ही पार्टियों को अपनी ओर से इस ओर मेहनत करनी ज़रूरी है. वरना फायदा किसी तीसरे को मिल सकता है.
इन सभी बातों पर गौर करने पर ये लगता है कि विकास, पार्टी, संगठन बहुत पीछे छूट जाता है क्योंकि ऐसे मुद्दे हमेशा से राजनीति की अहम धुरी रहे हैं जिनके इर्द गिर्द हर चुनाव लड़ा जाता है.
