लौकिक चमत्कार और धार्मिक अतिशय मे बहुत अंतर होता है समता सागर जी

   विदिशा - "लौकिक चमत्कार और धार्मिक अतिशय में बहुत अंतर होता है, यह सामान्य लोगों में नहीं होते यह तो सामुहिक पुण्य और दैवीय  सहयोग से ही उत्पन्न होते है, लेकिन आजकल चमत्कार चमत्कार के नाम पर लोगों को ठगने का उपक्रम भी चलने लगा है।उपरोक्त उदगार मुनि श्री समतासागर जी महाराज ने शीतलधाम ओन लाईन धर्म सभा में व्यक्त किये।"
(अविन
उन्होंने कहा कि तीर्थंकर  की कल्याणक भूमी पर जो अतिशय पहले होते थे वह अतिशय आज नजर नहीं आते, यह काल का प्रभाव है। हालांकि उन्होंने कहा कि अतिशय की मैं सर्वथा मना नहीं कर रहा लेकिन कुछ लोग यदि किसी घटना विशेष को लेकर ही अतिशय मानने लगें तो यह अतिशय नहीं  उनकी कल्पना की ही उडा़न ही मानी जाऐगी। 
उन्होंने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को किसी बात का निषेध किया जाए तो वह बात व्यक्ती के सामने जरूर जरूर करके आती है, कई बार व्यक्ती साईक्लोजिकल रुप से परेशान हो उठता है, और फिर उनके घर परिवार के लोग कहने लगने लगते है कि जाको कोई ऊपरी बाधा हो गई और फिर झांड़ फूक और आदि चमत्कार की बातें सामने आतीहै। उन्होंने कहा कि कई बा र यदि किसी व्यक्ती को किसी वस्तु की मना की जाए तो वह वस्तु उसके चित्त में घूम घूम कर आती हें। 
जैसे एक व्यक्ती  को कहा गया कि जब तुम स्नान करो और तेल लगाने जाओ तो सड़े टमाटर और टूटी चप्पल का ध्यान मत करना चूंकी उसको निषेध किया गया था तो अब जैसे ही वह स्नान करता और तेल लगाने जाता तो उसे सड़े टमाटर और टूटी चप्पल दिखने लगते, इसी प्रकार कई लोग तो अपने ख्यालों को ही अतिशय के रुप में ही व्यक्त कर देते है, यह अतिशय नहीं अतिश्योक्ति है! कहते है, कि महाराज जी जैसे ही हम ध्यान में बैठते है तो आचार्य श्री हमारे पास आ जाते है, उन्होंने कहा कि यह तो अच्छी बात है कि आपके ख्याल में आचार्य श्री ही आते है।, यह अतिशय नहीं यह आपकी अपनी कल्पना मात्र है,जैसे आप अपने मन मस्तिष्क में  कल्पना करते हो वैसी कल्पनाऐं साकार रुप लेंने लगती है। 
उन्होंने कहा कि जैसे कुछ लोग मन से बहुत कमजोर होते है, कल्पनाऐं उनके मन मस्तिष्क पर इतनी हांवी हो जाती है, कि उनको भूत प्रेत नजर आने लगते है। उदाहरण देते हुये उन्होंने कहा कि एक व्यक्ती को अनुभव में चारों ओर सांप ही सांप नजर आते थे, वह घबराया और हमारे पास आया तो हमने उसको कहा कि तुम आज अपने जूते को  तकिया बना कर सोना और तिजोरी की चाबी पैर के नीचे रख लैना  तो उसने कहा कि महाराज जी आपने कहा है तो में ऐसा ही करूंगा तो फिर सांप तो नजर नहीं आऐंगे?
हां हां बिल्कुल नजर नहीं आऐंगे तुम चिंता मत  करो और जाकर प्रयोग तो करो। उसको विश्वास जम गया क्यू की उसको महाराज पर श्रद्धा थी और विशवास भी था सो वह घर गया और जैसा उससे कहा गया था उसने वैसा ही किया। दूसरे दिन जब  वह हमारे पास आया तो हमने उससे पूंछा क्यू क्या हुआ? का बताए महाराज जी यह तो चमत्कार हो गया, रात को बढ़िया नींद आई और कोई भी सांप नजर नहीं आया। उन्होंने कहा कि यह चमत्कार नहीं यह श्रद्धा का प्रभाव है, और ऐसी श्रद्धा जिसके प्रति आपको विश्वास है, उसी से उत्पन्न होती है, उन्होंने कहा कि एक बार एक व्यक्ती पंडित से मुहुर्त निकाल नई गाड़ी लेकर आया और एक्सीडेंट हो गया जरा सी खरोच आई तो वह पंडित को दोष देता है कि पंडित जी ने मुहूर्त सही नही निकाला।
अरे पंडित जी ने तो मुहुर्त देखकर ही निकाला था अब तुमको ही गाडीं चलाना नहीं आती तो पंडित या ज्योतिष क्या कर सकते है?
उन्होंने कहा कि हमारी अपनी गलती से कोई घटना घट जाती है,और हम दूसरों को दोष दैनै लगते है, और कई बार कोई घटना घटती है, और हम ब च जाते है  भले ही गाड़ी चकनाचूर हो जाती है तो भी हम भगवान और अपने गुरू का आभार मानते है, कि चलो गाड़ी गई सो गई पूरा परिवार तो बच गया? मुनि श्री ने कहा कि उसके पीछे  हमारा विश्वास उनकी प्रमाणिकता है, और सच्चे साधक की साधना का  प्रभाव पड़ता ही है,उन्होंने कहा कि वर्तमान में अतिशय नहीं होते में मना नहीं कर रहा लेकिन अतिशय के नाम पर हर किसी से प्रभावित भी नहीं होंना चाहिये।
उपरोक्त जानकारी प्रवक्ता अविनाश जैन ने देते हुये बताया मुनि श्री के प्रवचन प्रतिदिन 8:15 से शीतलधाम पर चल रहे है, जिसका लाईव प्रसारण यू टियूब पर चल रहा है।
        संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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