ध्यान यानी स्वयं झाँकने का पथ पुलक सागर जी

 बांसवाड़ा -आचार्य श्री पुलक़ सागर जी महाराज ने कहा ध्यान है तो सब कुछ है हमारे धर्म और महान संस्क्रति में प्रारंभ से ही ध्यान का महत्व रहा है। ध्यान जीवन को संवारने की एक स्थिति  और आध्यत्मिक विधि है।जिसके महत्व व मानव जीवन के लिए उपयोगिता को आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है। उन्होंने कहा तुम्हें बस द्वार खोलना है इसके लिए तुम्हें चलना होगा ध्यान पथ पर। लेकिन परिस्थति बदलती जा रही है। नही पीढ़ी को ध्यान का महत्व समझाने और सिखाने के लिए खासी मशकत करनी पढ़ती है। इसकी वजह यह है कि हम पुरातन संस्क्रति से विमुख होते जा रहे है। मेरी निगाहों में ध्यान भीतर और अंतर्मन में झाँकने की विधि है। 
    उन्होंने कहा मुझे अपनी सन्यासी जीवन के करीब ढाई दशकों से विभिन्न महान सन्तो का सानिध्य और उनके अनुभव का लाभ मिला है। उसके आधार पर दावे के साथ कह सकता हु कि ध्यान के अलावा अन्य कोई मार्ग नही है। जो भी मार्ग है सब ध्यान के रूप में ही है। प्रार्थना, पूजा, उपासना यह सब ध्यान ही तो है। मैं तो योग से लेकर ज्ञानार्जन और भक्ति आत्म साधना के पथ को भी ध्यान ही मानता हूं। चित्त की मोन निर्वाचार और शुद्धावस्था ही ध्यान है। ध्यान और प्रार्थना हमे एक ही मंज़िल पर पहुचाते है।
      संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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