दमोह -आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा जब तीव्र पाप कर्म का उदय होता है तब भगवान की भक्ति भी काम नही आती है और न कोई साथ देता है। इस पाप कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। सच्चे भक्त के यदि पाप कर्म मे यदि कोई अनहोनी हो जाती है तो उसे अपनी आस्था धर्म और धर्मात्माओं के प्रति कम नही करना चाहिए। उन्होंने कहा मानव जीवन मे सर्वश्रेष्ठ भक्ति चक्रवती करता है। वह अपना पूरा खजाना भक्ति मे खोल देता है। इसके आगे इंद्र की भक्ति भी फीकी।पड़ जाती है। जैसे किसी को कैंसर रोग हो जाता है तो वह डॉक्टर के आगे अपना खजाना खोल देता है वैसे ही चक्रवती भक्ति में अपना खजाना भक्ति में खोल देता है। देवगण पूरे परिवार सहित पूजा करते है। उन्होंने अन्त में कहा मनुष्य को भी पूरे परिवार सहित भक्ति आराधना सामूहिक रूप से करना चाहिए।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
