अहंकार ने ही तुम्हें मारा पुलक सागर जी

 बांसवाड़ा -आचार्य श्री पुलक साग़र जी महाराज ने अपने उदबोधन मे कहा इस नसीयत को सदा याद रखिए कम खाइए, गम खाईए और नम जाइए। नगीना आखिर उस सोने मे ही लगा करता है जो नरम होता है। अहंकार ऐसी गीली लकड़ी है जो न जलती है म जलाने देती है। ना प्रकाश करती है, ना प्रकाश होने देती है। दुसरो की आंखों से आंसू बहाती है।
      आचार्य श्री ने कहा अहंकार की लकड़ी जिस चूल्हे में जलती है आधी ही जलती है वह ऊपर से  काली ही रह जाती है और आँसुओ को देती है1मन पास में बैठने नही देता, इसीलिए मन को तोड़ो, झुको अकड़ को छोडो। क्योकि झुकने में परमात्मा के अन्तरात्मा के द्वार खुलते है। देखो रावण कंस और दुर्योधन की दशा। तुम दुसरो को गिराने के लिए मन1 करते हो , लेकिन खुद ही फस जाते हो और वह निकल जाता है, लेकिन न्याय किसी क्यों नही छोड़ता। आप यदि क्रोध करने वालो को छोड़ भी दो तो भी अध्यात्म उसे नही छोड़ेगा। 
    सन्त पर जब आस्था गहरी  होतो है तो तुम उसके साथ रहते हो और सन्त पर से जब श्रद्धा टूटेगी तो तुम बहकर मैदान में पड़े रहोगे। इसलिये कहते है यह मत कहो कि चरित्र जड़ की क्रिया है। शरीर की क्रिया है। ऐसा कहोगे तो हमेशा कीचड़ में ही पड़े रहोगे और सागर के जल को छू नही पाओगे।
     संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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