बांसवाड़ा-बाहुबली दिगम्बर जैन मन्दिर में आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा मानव जीवन को धर्म से अलग करके नही देखा जा सकता। मानव और धर्म दोनो शब्द आपस मे इस हद तक गूंथे हुए है कि उनमें विभेद करना असंभव है। उन्होंने कहा एक पूर्ण मानव वही है जो धर्म के प्रति समर्पित है। यदि हमने धर्म को पृथक कर दिया तो तो फिर क्या बचेगा?
उन्होंने कहा मेरा एक प्रश्न यह है कि धार्मिक होने की पहचान क्या है, कोई व्यक्ति धर्म के प्रति कितना समर्पित है इसका वास्तविक पैमाना क्या है और हम कैसे जाने कि अमुक व्यक्ति धार्मिक है और अमुक व्यक्ति अधार्मिक है। क्या सिर्फ आध्यात्मिक क्रिया ही धर्म है। जीती जागती मूर्तियो की भी सेवा भी कर लो सेवा मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि कुछ लोगो ने सिर्फ मंदिर जाने, पूजा अर्चना करने, चावल चढाने एवं अनुष्ठान जैसे धार्मिक क्रियाकलापों को धर्म मान लिया है। क्या मंदिर जाने मात्र से कोई व्यक्ति धार्मिक हो जाता है और क्या मंदिर जाने मात्र से कोई व्यक्ति धार्मिक हो जाता है और क्या मंदिर मंदिर में चावल चढाने भर से ही उसकी अधार्मिक गतिविधियों पर पर्दा पड़ जाता है। इन प्रश्नों पर मेरा जवाब यही है कि हरगिज नही। मंदिर जाना और अनुष्ठान करना ही धर्म नही है। मानव की सेवा करना भी महान धर्म है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
