बांसवाड़ा -क्रांतिकारी सन्त आचार्य श्री पुलक सागर जी महाराज ने कहा जिनका करुणा का स्वभाव होता है, वह पात्र अपात्र को नही देखते।ईश्वर भी करुणा करते समय पात्र अपात्र का चयन नही करता। यदि वह ऐसा नही करे तो हम उसकी करुणा के पात्र नही बन पाएंगे। करुणा करने वाले का काम है बस करुणा करना। उन्होंने कहा हकीकत मे देखा जाए तो करुणा की नही जाती, करुणा तो सहज हो जाती है। आप यह मत सोचो कि जिस पर हमने करुणा कि वह हमारी करुणा का दुरुपयोग तो नही करेगा। उसका किया गया दुरुपयोग उसकी सजा बनेगी। हमारी नही। उसके दुरुपयोग डर से कही ऐसा न हो कि इस धरती से करुणा का अंत हो जाए। उन्होंने कहा मैं मानता हूं कि दुनिया में कुछ ऐसे लोग होते है जिन पर दया करो तो वह लोग ही बिच्छू की तरह बदले में हमे ही डंक मारते है। पर बिच्छू के डंक के भय से डूबते हुए बिच्छू को पानी से नही निकालना यह करुणा का काम नही हो सकता। जिसका जैसा स्वभाव है वह तो वैसा ही रहेगा पर हमे अपना स्वभाव नही छोड़ना चाहिए। पराया दर्द अपनी तड़पन बनता है, पराई पीड़ा जब अपनी वेदना बनती है, दूसरो की छटपटाहट जब स्वयं की छटपटाहट बनती है, तब व्यक्ति संवेदनशील माना जाता है, यही संवेदनशीलता ही अध्यात्म की शुरुआत होती है। हकीकत मे हम जिस दिन हम इतने सवेदनशील हो जाएगे उसी दिन हमारा धर्म में प्रवेश हो जाएगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी