चातुर्मास श्रावक और साधु दोनो के लिए साधना का वक़्त होता है आचार्य ज्ञानसागर जी

 बारा-आचार्य  श्री  ज्ञान  सागर  जी  महाराज  ने  जैन  नसियाँ  बारां  में  धर्म  प्रेमी  बंधुओ  को  सम्बोधित  करते  हुए  कहा  कि  चातुर्मास  हर  वर्ष  आता  है।  क्योंकी बारिश  के  चार  महीनों  में साधु  विचरण  न  करके  एक  स्थान पर  ही  रहते  है। पर  श्रावक के  लिए  ऐसा  कोई  नियम  नहीं  होता। लेकिन  चातुर्मास  दोनों  के  लिए  साधना  का  वक़्त  होता  है। 
जानकारी देते हुए प्रवीण जैन बारा ने बताया आचार्य श्री ने विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा, संत  और  समाज  दोनों के  लिए यह  समय  धर्म  ध्यान  त्याग  सयंम नियम  का  होता  है। चातुर्मास  105 दिन  का  होता  है। उसमें  हमें 4 माह का निर्णय लेना चाहिए की हमें इन 4 महीनों में क्या करना है। इस काल में शरीर से खाने का विकल्प छोड़कर बाहर से कमाने का भी त्याग करते हुए संयम पूर्वक  श्रावको को इस चातुर्मास  काल में अपनी जीवनचर्या जीनी चाहिए।
 
  आचार्य श्री ने चातुर्मास के चार चरण बताते हुए कहा सावन में भक्ति, भादो  में त्याग, अश्विन में संयम, कार्तिक में वैराग्य,  इन चारों माह में इनकी विशेष साधना करनी होती है। अगर केवल पास होना है तो मास्टर जी जीतना पढ़ाते हैं उसमें संतोष कर लेना, लेकिन यदि टॉप टेन में आना है तो गुरु ने जितना सिखाया उसमें कभी संतोष नहीं करना। उस ज्ञान को कैसे आगे बढ़ाया जाए, उसके लिए पुरुषार्थ शुरू कर देना चाहिए। 

 उन्होंने कहा  हर गलती को अपना गुरु बनाएं, और शिक्षा लें। 
अन्त मे एक कथन के साथ गुरुवर ने कहा
अकर्म से कर्म नष्ट होता है, विशुद्ध से अशुद्धि नष्ट होती है। 
 ज्ञान से अज्ञान नष्ट होता है, अतः धर्म के माध्यम से विशुद्धि और ज्ञान बढाए। 
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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