आष्टा- जैन धर्म में चरित्र की पूजा की जाती है यहां व्यक्ति नही बल्कि व्यक्तित्व को प्राथमिकता दी गई है। भगवान की भक्ति औऱ पूजन के लिए आमंत्रण की अपेक्षा नही की जा सकती। यदि आप भक्ति के लिए भी आमंत्रण की आवश्यकता महसूस करते है तो यह आपकी भव्यता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
उक्त उदगार गाँव मैंना में पंचकल्याणक समारोह में मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ने कही। मुनि श्री ने कहा कि वीतरागी देव तथा चरित्रमय साधुओ की आराधना के लिए पूर्वाग्रह का त्याग करना चाहिए।उन्होंने कहा पंचकल्याणक महोत्सव धर्म की प्रभावना औऱ आत्मा की शुद्धि के लिए किए जाते है। धर्म का प्रत्यक्ष सम्बन्ध आत्मा के कल्याण से है। धार्मिक आयोजनों मे आत्माभिमान और माया चारिता को छोड़कर निशल्य होकर श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
मुनि श्री ने कहा इस कोरोना काल में जहां हम अपनी सुरक्षा के लिए सेनिटाइज होकर आ रहे है वही सभी प्रकार के सांसारिक द्वंद को छोड़कर अपनी मन आत्मा को सेनिटाइज यानी शुद्ध भावो से निर्मल होना आवश्यक है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी