लड़ना है तो अपने कर्मो से लड़ो, आपस में क्या लड़ना आचार्य श्री

 खातेगाँव -लड़ना है तो अपने कर्मो से लड़ो, आपस में क्या लड़ना। वैमनस्यता के माहौल की औऱ भला क्यों बढ़ रहे हो। हम अपनी क्षणिक आत्ममुग्धता से दूसरे को गौण समझने लगते हैं, जो सही नही है। हर मानव मात्र के लिए परम सत्ता एक ही है, उसके लिए हम सब बराबर है। सिर्फ कर्म के आधार पर व्यक्तित्व विकास का निर्धारण होता है। उक्त उदगार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने खातेगांव प्रवास के दौरान कहे।
  आचार्य श्री ने कहा पूर्व जन्म मे किए गए कर्म हमे याद नही रहते, लेकिन उनका फल दूसरे जन्म मे ही भोगना तो पढ़ता ही है। आप चाहे इतिहास भूल जाए लेकिन आपके औऱ उनके फल उसे भूलने नही देते। कर्म और फल का सबन्ध बहुत पुराना है। यदि उसे भोगना है तो साहस के साथ शान्ति के साथ संकल्प के साथ बिना किसी पर थोपे अंतरात्मा से स्वीकार करना चाहिए, तभी कर्मो से ऊपर उठा जा सकता है। किसी ने कर्ज लिया है तो आपको उसकी एक एक पाई चुकाना पड़ेगा। कर्म, कर्ज की भांति है इसमे कभी दया नही आती। पुराने जमाने में लोग कर्ज लेते ही उसे हर दिन थोड़ा थोड़ा निकालना चालू कर देते थे। कर्ज लेने के बाद भूलना नही चाहिए।कही बार पूर्व जन्मों के कर्मो के काऱण अच्छे कर्मों का परिणाम भी गलत हो जाता है। अच्छा कार्य करने के अवसर को कभी नही छोड़ना चाहिए। अक्सर हाथ छूटने के    बाद हाथ में सिर्फ पछतावा रह जाता1 है। 
 समाज प्रवक्ता नरेंद्र चोधरी व पुनीत जैन ने बताया दोपहर मे आदिम जाति कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव डॉक्टर पल्लवी जैन गोविल भी आचार्य श्री दर्शन हेतु खातेगाँव पहुची। लेकिन आचार्य श्री के अचानक नेमावर  विहार होने से उन्होंने मार्ग मे ही आचार्य श्री के दर्शन किए।उनके साथ जिला संयोजक सुप्रिया बिसेन, उपमंत्री मोहरसिंग सिकरवार, संतोष लोदवाल भी थे।
   संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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