*एक सकारात्मक सोच*
पारस जैन " पार्श्वमणि " पत्रकार कोटा (राज)
दिल्ली-भारत वर्ष की कुल एक सौ तीस करोड़ की आबादी में जैन लोगो की संख्या बहुत कम है । उसमें भी दिगम्बर , श्वेताम्बर , मुर्तिपूजक , स्थानकवासी न जाने कितने पंथ , सम्प्रदाय , आम्नाय के मानने वाले है। आज वर्तमान समय मे सोशल मीडिया व्हाट्सएप फेसबुक यूट्यूब नेटवर्किंग के तेजी से प्रचार होने के कारण हमारी जो जैनधर्म संस्कृति जैनदर्शन , माँ जिनवाणी का प्रचार की संदेश वाहक*
1. स्वतंत्र जैन चिंतन, अजमेर
2. धर्म रत्नाकर, उदयपुर
3. सम्मेदाचल, मेरठ
4. जैन फोकस, आगरा
5. वर्धमान सन्देश, कोलकाता
6. श्री गुप्ति संदेश, गन्नौर
7. विदर्भ जैन न्यूज, नागपुर
8. जय जिनेन्द्र, कानपुर
9. युग प्रवाह, मुम्बई
10. वीर निकलंक, इंदौर
11. जिनभाषित, भोपाल
12. सन्मति सन्देश, दिल्ली
13. अध्यात्म पर्व पत्रिका, झांसी
14. तीर्थंकर वाणी, अहमदाबाद
15. तीर्थंकर, इंदौर
16. धर्ममंगल, पुणे
17. दिगम्बर जैन पथ, भोपाल
18. जैन बालादर्श, इलाहाबाद
19. जैन सिद्धान्त भास्कर, आरा
20. विधा - सुधा, ललितपुर
21. विद्या देशना, ललितपुर
22. साप्ताहिक जनप्रिय, ललितपुर
23. अहिंसा क्रांति
24. शाकाहार क्रांति, इंदौर
25. वेजिटेरियन गाइड, कोलकाताH
*इन पच्चीस पत्र पत्रिकाओं का बंद हो जाना हमे सोचने को मजबूर कर रहा है कि इसके पीछे क्या कारण रहा। यह क्या हो गया। कैसे हो गया। यह छोटी बात नही है। जो जैन पत्र पत्रिका अभी वर्तमान में प्रकाशित हो रही है उनका समाज के आर्थिक सहयोग के बिना उनका क्या भविष्य होगा। जिन पत्र पत्रिकाओ का प्रकाशन अभी हो रहा है वो अपने ही दम पर चल रही है जैन समाज के सम्पन लोगो का समर्थन उनको नही मिल रहा है। मै खुद यह महसूस कर रहा हूँ कि जैन समाज का अब इन पत्र पत्रिकाओं के प्रति रुझान नही रहा। दूसरा कारण वैश्विक महामारी कोरोना भी रहा। यदि जैन समाज का अपना प्रबल सहयोग समर्थन नही मिला तो एक दिन कोई भी जैन पत्र पत्रिकाये नजर नही आएगी। यह बहुत बड़ा सोचनीय , चिन्तनीय , गंभीर विषय है। मै राष्ट्रीय संवाद दाता पारस जैन पार्श्वमणि पत्रकार सभी राष्ट्रीय महासभा महासमिति एवम् विभिन संस्थाओं के पदाधिकारियों , विद्वत वर्ग एवम् बड़े बड़े पत्रकार संगठन से बहुत ही विन्रम भावो से अनुरोध करता हूँ कि इस बारे में बड़े बड़े सेमिनार आयोजित कर इस विषय के बारे में विचार करे।*
