शाश्वत स्वरूप की निर्मलता के लिए पुरुषार्थ करना होता है : सुनील सागरजी

घाटोल-वासुपूज्य मंदिर में अष्टाह्निका महापर्व के प्रथम दिन आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज  ने धर्म उपदेश देते हुए कहा कि इस संसार में देह शाश्वत नहीं है एक स्वरूप ही शाश्वत है जिस की निर्मलता के लिए पुरुषार्थ करना होता है। उन्होंने आगे कहा कि हर सुख में सुखी होकर और हर दुख में दुखी होकर मत जियो। स्वयं को सिद्ध परमात्मा से कम मत समझो और बाहरी साधनों में मत उलझो क्योंकि बाहरी साधनों में कतई सुख नहीं है। सच्चा सुख स्वयं के भीतर है। यदि बाहरी साधनों में सुख होता तो हमारे तीर्थंकर और भरत चक्रवर्ती जिनके पास अर्थात धन-संपत्ति होने के बावजूद भी सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने कहा कि जिन्होंने स्वयं को जान लिया वह स्वयं सिद्ध हो गए और जो स्वयं को नहीं जान पाया वह गिद्ध हो गए। अष्टाह्निका महापर्व के शुभारंभ पर मंदिर प्रांगण में सिद्धचक्र महामंडल विधान का विधिवत प्रारंभ हुआ।
            संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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