ढाना में जैन समाज कम, फिर भी विधान में पंचकल्याणक जैसा माहौल : पूर्णमति माताजी


ढाना-विद्या गुरु के चरण जिस धरती पर पढ़ते हैं, वह चंदन बन जाती है। गुरु के बिना कोई काम शुरू नहीं होता है। सिद्धचक्र विधान कराने से अनंत कर्मों की निर्झरा होती है। यह बात विधान के समापन अवसर पर हवन के बाद आर्यिका पूर्णमति माताजी ने अपने उद्बोधन में कहीं। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री ने नेमावर से सिद्धचक्र विधान के लिए आशीर्वाद के साथ-साथ ऊर्जा भी भेजी थी। जिस कार्य में आचार्य श्री का आशीर्वाद होता है वह कार्य हमेशा सफल होता है। उन्होंने कहा कि सब जीवों के पुण्य का भाव था इसलिए ढाना में बीस घर की जैन समाज होते हुए विधान नहीं पंचकल्याणक जैसा माहौल था। जैसे पांडव पांच से लेकिन वह ताकतवर थे, इसी प्रकार ढाना में पांडव जैसा ही कार्य आप लोगों ने किया है।
श्रीजी की शोभायात्रा के बाद विधान का हुआ समापन
ग्राम ढाना में आठ दिवसीय सिद्धचक्र विधान के समापन पर हवन हुआ और श्रीजी की शोभायात्रा के साथ विधान का समापन हो गया। श्रीजी की शोभायात्रा विधानाचार्य अंकित भैया के निर्देशन में ग्राम के प्रमुख मार्गों से निकली। शोभायात्रा में आर्यिका पूर्णमति माताजी ससंघ, विधान के सभी प्रमुख पात्र और इंद्र इंद्राणी साथ चल रहे थे। इस अवसर पर श्री जी की आरती लोगों द्वारा की जा रही थी। दिव्यघोष, बैंड और शहनाई पर लोग खुशी में नृत्य कर रहे थे। 
                 संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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