रहली-परिवार में धन है, साधन संपन्नता है, उच्च शिक्षा बड़ा घर है, कार है, पर बच्चों में संस्कार नहीं तो सब दौलत बेकार है। यह प्रवचन आर्यिका पूर्णमति माता जी ने जैन शाला में धर्मसभा में दिए। माताजी ने कहा कि बच्चों को बचपन में संस्कार देना संयुक्त परिवार में दादा-दादी माता-पिता का दायित्व है। बच्चों को मिले संस्कार उसका भविष्य बनाते हैं बच्चों की रुची और योग्यता के अनुसार आगे बढ़ने देना चाहिए बच्चे कुछ बनना चाहते हैं मां-बाप कुछ बनाना चाहते हैं इसी के चलते बच्चे तनाव में रहते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में 6.50 करोड़ बच्चे इसी के चलते डिप्रेशन में जी रहे हैं बच्चे आत्महत्या तक कर रहे हैं। पहले परिवार परजीवी थे, एक कमाता था, घर में मां-बाप, भाई-बहन सब रहते थे एक दूसरे का सम्मान करते थे। आज छोटी सी बात पर पुरुष पत्नी को लेकर परिवार से अलग हो जाता है पूरा परिवार संकट में आ जाता है परिवार को एक साथ रहने के लिए संस्कारों की सबसे अधिक प्राथमिकता देना चाहिए। बच्चों की गलती पर उन्हें समझाएं और आगे बढ़ाएं समस्या हो तो समाधान दें अच्छा काम करें तो प्रोत्साहन करें, प्रेम और प्यार ऐसा स्वभाव है जिसमें मनुष्य तो क्या जानवर भी आज्ञाकारी हो जाता है। संस्कार ही है जब एक बेटा अपने पिता को दादा की सेवा करते देखता है तो वह भी माता पिता की सेवा करने लगता है यही जीवन का सबसे बड़ा सुख है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी