अहम और वहम दोनों सर्वनाश के कारण है : आचार्य सुनील सागरजी


घाटोल-कस्बे के वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर प्रांगण में धर्मसभा को संबोधित करते हुए चतुर्थ पट्टाधीशाचार्य सुनील सागरजी महाराज ने कहा कि मन में वही बसते हैं जिनके मन साफ है, सुई में धागा वही जाता है जिसमें गांठ नहीं होती है। अहंकार करना और शक और संदेह करना दोनों आज समाज एवं परिवार के लिए घातक एवं सर्वनाश के कारण हैं। आज हम देखते हैं कि इंसान अहंकार में अपना अपने परिवार का पतन कर लेता है। परिवार में संदेह उत्पन्न होने पर पूरा परिवार नष्ट हो जाता है। वर्तमान में हम रोज समाचारों के माध्यम से पढ़ते हैं कि वहम और शक उत्पन्न होने पर कितनी हत्या और आत्महत्या रोज हो रही है, लेकिन यह निवारण नहीं है। निवारण तो तब है कि ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होने पर आपस में वार्तालाप एवं प्रेम से उनका निवारण करें। बिना मतलब का शक उत्पन्न होने पर परिवार में बैठकर इन संदेह को दूर करें। हत्या एवं आत्महत्या यह समाधान नहीं है। साथ ही वर्तमान परिपेक्ष्य में मोबाइल एवं इंटरनेट आने से लोगों के बीच एवं परिवार के बीच आपसी समन्वय कम होता जा रहा है। संवादहीनता के कारण संदेह उत्पन्न होते हैं। उन्होंने कहा कि आज मानव राग-द्वेष में उलझा हुआ है। जिससे प्रेम करता है उसके प्रति राग कर बैठता है और जिससे नफरत करता है उसके प्रति द्वेष एवं वैमनस्य पाल बैठा है। लेकिन इन दोनों से हमको ऊपर उठना है और वीतरागता को प्राप्त करना है।
                          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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