सुख, दुख को प्रसाद मानकर स्वीकारें मुनि श्री


कोटा-मंदिर से मिलने वाले प्रसाद में पसंद या नापसंद नहीं देखी जाती हैं। प्रसाद में जो भी मिले जितना भी मिले उसे प्रेम के साथ स्वीकार किया जाता है। उसी तरह से जीवन में मिलने वाले हर सुख या दुख को प्रसाद मानकर स्वीकार कीजिए। किस्मत या ईश्वर ने जो भी दिया है, उसे अहो भाव से गले लगाइए। यह बात मुनि श्री संबुद्ध सागर जी महाराज ने कही।
. वे अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर शास्त्रीनगर में धर्मसभा काे संबाेधित कर रहे थे। उन्होने कहा कि जो जीवन में आने वाले दुख और अभावों को रोना रोता रहता है। उसे कभी भी आनंद और शांति की प्राप्ति नहीं होता।
समृद्धि, सफलता, प्रतिष्ठा व स्वास्थ्य आदि उपलब्धियों को पाने की मास्टर चाबी है कि हर दुख को प्रेम के साथ स्वीकार किया जाए। मुनि श्री ने भक्तजनों को सफलता और समृद्धि का रहस्य बताया। धर्म सभा को मुनि सक्षम सागर महाराज ने भी संबोधित किया।
             संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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