विशेष खबर। क्या गाँव और क्या शहर, कोरोना ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखी है, दिहाड़ी मजदूर से लेकर मध्यम वर्गीय परिवारों को भुखमरी की कगार पर खड़ा कर दिया है, छात्र शिक्षा के लिए मोहताज हैं तो प्राइवेट शिक्षक दो जून की रोटी के मोहताज हो रहे हैं, शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों में जनता त्राहि माम् - त्राहि माम् चिल्ला रही है लेकिन इन सबके बावजूद एक वर्ग है जो सत्ता की मलाई खा रहा है और वो वर्ग है सफेद पोशों का ।
चुनाव के समय या चुनाव के ठीक पहले खुद को जनता का सेवक साबित करने की होड़ में रहने सफेदपोश नेता इस महामारी में जनता के बीच दिखाई नहीं दिए, मानाकि कोविड गाइडलाइंस के हिसाब से सामाजिक दूरी का पालन करना है लेकिन घर पर रहकर भी अपनी जनता का ख्याल लिया जा सकता है, उनकी जरूरत के समान की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
लेकिन नेता हैं कि घरों से निकल रहे और जो निकल भी रहे हैं तो कोविड गाइडलाइंस को ठेंगा दिखाते हुए अपनी मार्केटिंग की चिंता है उन्हें जनता के दुख दर्द की परवाह नहीं, यह हालात केवल मध्यप्रदेश की एक विधानसभा की नही है। विधानसभा एव लोकसभा क्षेत्र के कुछ क्षेत्र को छोड़ के , बल्कि हर क्षेत्र के यही हालत हैं, कई इलाकों में उनके जनप्रतिनिधियों के गुमशुदगी के पोस्टर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं ।
निकट भविष्य में नगरीय निकाय चुनाव और 2023 या 2024 में विधानसभा या लोकसभा के आम चुनाव होने है और इस चुनावी समय में बरसाती मेढ़क क्षेत्र में आकर टर्र टर्र करते सुनाई देंगे लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है, समय आने पर सबका हिसाब किताब करेगी ।
