यहां फूल, पत्ती व फल तोड़ना है मना, क्योंकि इन पर है सिर्फ पक्षियों का अधिकार


ग्वालियर। फूल, पत्ती तोड़ना मना है। ये चेतावनी हर आमऔर खास बगीचे में देखने को मिल जाती है। लेकिन ऐतिहासिक ग्वालियर दुर्ग की तलहटी में स्थित गोपाचल पर्वत का मामला इससे कुछ अलग है। यहां इस तरह की कोई चेतावनी देखने कोे नहीं मिलती लेकिन यहां पर फूल,पत्ती तो क्या फल तोड़ना भी पूरी तरह से मना है। कारण, यहां लगे फलों पर आदमी का नहीं, पक्षियों का एकाधिकार है और वे पूरी तरह उनके लिए संरक्षित हैं। सिर्फ पपीता को छोड़कर। पपीता भी इसलिए कि वह पक्षियों को पसंद नहीं।



बारह हेक्टेयर में फैला सिद्धक्षेत्र गाेपाचल पर्वत यूं ताे जैन धर्म के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां पार्श्वनाथ भगवान के दो मंदिर हैं और पत्थरों से उकेरी गई 42 फीट ऊंची, 30 फीट चौड़ी प्रतिमा स्थापित है। किला तलहटी की चट्‌टान पर जहां दूब रोपना भी मुश्किल हो, वहां चारों तरफ हरियाली का होना ही एक उपलब्धि है। यह उपलब्धि भी रातो-रात नहीं बल्कि 1984 से शुरू किए गए अथक परिश्रम का फल है। श्री दिगंबर जैन गोपाचल पर्वत संरक्षक न्यास से जुड़े अजीत वरैया यहां पर छोटे-बड़े सवा लाख पेड़-पौधे होने का दावा करते हैं। इनमें चार हजार बड़े पेड हैं,जिनमें 800-1000 फलदार हैं।




फलदार पेड़ों में भी ज्यादातर आम, अमरूद, अनार, सीताफल, शहतूत, आंवला और पपीता शामिल हैं। यहां फल, फूल और पत्तियों को सिर्फ पक्षियों को तोड़ने और उपयोग करने की आजादी है, इसके अलावा यहां तैनात कर्मचारी भी इन्हें हाथ नहीं लगाते हैं। यहां लगने वाले पपीते के फल का उपयोग ही यहां के कर्मचारी कर सकते हैं क्योंकि इसका उपयोग पक्षी नहीं करते हैं।





1984 से पहले यहां पर झाड़ियां और पत्थरों के अलावा कुछ नहीं था, लोग नित्य कर्म से निवृत्त होने के लिए आते थे। धीरे-धीरे यहां पर पौधे लगाए गए, उनकी रखवाली की गई तो वह पेड़ों में परिवर्तित हो गए। यहां पर लोगों को सुबह-शाम घूमने के लिए आने की सुविधा थी, लेकिन उन्होंने यहां लगाए गए पेड-पौधों को नुकसान पहुंचाना शुरू किया तो उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब श्रद्धालुओं को यहां आने दिया जाता है। पौधरोपण और वाटर हार्वेस्टिंग का काम जारी है।

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