तेंदूखेड़ा -वैज्ञानिक संत आचार्यश्री निर्भय सागर जी महाराज ने प्रातः कालीन स्वाध्याय में अपने शिष्यों को जैन धर्म के सिद्धांतों पर व्याख्यान करते हुए बतलाया कि संकट महापुरुषों के जीवन में आते हैं कायरों के नहीं। क्योंकि ग्रहण सूर्य चंद्र को लगते हैं सितारों को नहीं, संकट मानव जीवन का श्रृंगार है जिन्होंने संकट को सहन करते हैं वे महापुरुष बन जाते हैं। संतों के जीवन में आए हुए संकट को उपसर्ग और परीशह कहते हैं। भगवान महावीर स्वामी आदिनाथ स्वामी, पार्श्वनाथ स्वामी, राम, हनुमान आदि ने जीवन भर संकटों को सहन किया, इसलिए आज भी उनका नाम श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है। इसलिए संकट से मत घबराओ। मेरे बंधु संकट जीवन का शृंगार हैं। आचार्यश्री ने कहा जो पाप कर्म घर,
गृहस्थी और दुकानदारी के समय किया जाता है वह भगवान की भक्ति से धुल जाता है, लेकिन जो पाप धर्म के क्षेत्र में किया जाता है उसका फल तो भोगना ही पड़ता है। आचार्यश्री ने कहा माता पिता गुरु और वैद्य से कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। यदि वैद्य के सामने झूठ बोलोगे तो रोग का निदान नहीं हो सकेगा। गुरुजी के सामने झूठ बोलोगे तो आत्मा से पाप नहीं धूल सकेगा और आत्मा पवित्र नहीं हो सकेगी माता-पिता से झूठ बोलोगे तो उनकी संपत्ति एवं कृपा प्राप्त नहीं हो सकेगी, इसलिए सदा सत्य बोलना चाहिए। सत्य ही ईश्वर है सत्य
की प्राप्ति हो जाना ही सच्ची साधना है।
आचार्यश्री ने कहा गलती होना सहज है। गलती इंसान से होती है भगवान से नहीं। इंसान को गलती समझ में आ जाती है। गलती पर गलती करने वाला शैतान कहलाता है। शैतानियत दुख का कारण है। इंसान बनकर शैतान के काम नहीं करना चाहिए। अपनी श्रद्धा भक्ति समर्पण और सत्कर्म करते रहना चाहिए, यही मानव जीवन की अमूल्य निधि है। संत को श्रद्धा भक्ति की दृष्टि से देखा जाता है। संत समाज को सदमार्ग दिखाते हैं यदि संत ही भटक जाएंगे तो दुनिया गलत रास्ते में चली जाएगी। अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा आप सभी को एक आदर्श संत बनना है।
आचार्य श्री निर्भय सागर जी महाराज श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में 10 दिन से विराजमान हैं। 13 मई को बिहार की संभावना है। जो झलौन मुहली होते हुए रहली पटनागंज पहुंचेंगे।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी
