भोपाल। ब्लैक फंगस से परेशान हो रहे प्रदेश के 421 मरीजों के सामने नया संकट आ गया है। इसका संक्रमण रोकने के लिए जो एंफोटेरिसिन-बी लाइपोसोमेल इंजेक्शन लगाया जाता है, वो प्रदेश के बाजारों में उपलब्ध नहीं है। सरकार ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर के लिए 2 हजार इंजेक्शन मंगाए हैं। इनमें से सोमवार को 600 इंजेक्शन इंदौर के एमवाय अस्पताल और 300 इंजेक्शन हमीदिया के गांधी मेडिकल कॉलेज को मिले हैं। इन 300 में भी 80 इंजेक्शन निजी अस्पतालों के लिए रिजर्व रखे हैं। ब्लैक फंगस के एक मरीज को एक दिन में कम से कम चार डोज लगती हैं।
इस हिसाब से 450 मरीजों को 1600 डोज चाहिए, लेकिन इसका इंतजाम नहीं हो पा रहा। निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिए तो इंजेक्शन पाना और भी मुश्किल है, क्योंकि इन्हें सिर्फ डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन पर ही इंजेक्शन मिल सकता है और यदि स्टॉकिस्ट के पास इंजेक्शन है तो वो इसे सीधे अस्पताल को देेंगे, न कि मरीजों के परिजनों को। जीएमसी के डीन डॉ. जितेन शुक्ला के मुताबिक परिजन यदि जीएमसी में रिजर्व इंजेक्शन लेना चाहते हैं तो उन्हें वहां की स्वशासी समिति को प्रिस्क्रिप्शन देना होगा। यहां से उन्हें एक बार में केवल एक दिन का डोज मिलेंगे।
बता दें कि यदि इन मरीजों को समय पर इंजेक्शन नहीं मिला तो यह देरी जानलेवा साबित हो सकती है। सोमवार को फूड एंड ड्रग कंट्रोलर पी. नरहरि ने इसकी जमाखोरी रोकने के लिए आदेश जारी किया। इसके मुताबिक अब इंजेक्शन की निगरानी ड्रग इंस्पेक्टर करेंगे। वे सीधे इसकी डिलेवरी अस्पताल में देंगे। जिस मरीज को ये इंजेक्शन लगना है, उसका रिकॉर्ड भी रखेंगे। स्टॉकिस्ट इसे सीधे बाजार में नहीं बेच सकेंगे। इस इंजेक्शन की बाजार कीमत करीब 7 हजार है, लेकिन वर्तमान में ये इंजेक्शन बिना रिकॉर्ड रखे बेचने की बात सामने आई थी।
