आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के त्याग और तपस्या के 53 वर्ष पूर्ण, 349 दीक्षा दी

गृहस्थ जीवन के दो भाई बन चुके मुनि, 41 साल से संघ में हैं साथ, बड़े भाई भी ले सकते हैं दीक्षा
 सागर -आचार्यश्री विद्यासागर जी  महाराज का बालक विद्याधर से मुनि विद्यासागर का सफर बुधवार को 53 वर्ष पूर्ण कर रहा है। त्याग और तपस्या का दूसरा नाम आचार्य विद्यासागर जी  महाराज है 10 अक्टूबर 1946 को चिक्कोड़ी सदलगा जिला बेलगांव कर्नाटक प्रांत में श्री मल्लप्पा और श्रीमती श्रीमंती जैन अष्टगे के घर बालक का जन्म हुआ तो उनका नाम विद्याधर रखा गया। कक्षा 9वीं तक लौकिक शिक्षा लेने के बाद 1966 में आचार्य देशभूषण जी  महाराज से उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया और 30 जून 1968 को अजमेर राजस्थान सोनी जी की नसिया में  उन्हें आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने मुनि प दीक्षा प्रदान की। मात्र 26 वर्ष की आयु में 22 नवंबर 1972 को उन्हें उनके गुरु ने अपना आचार्य पद सौंप दिया। छोटी सी उम्र में आचार्य पद पर बैठने वाले वे पहले जैन आचार्य थे। मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया मुनि दीक्षा के 53 वर्ष तक का इतिहास देखा जाए तो आचार्यश्री विद्यासागर जी  महाराज ने लगभग 130 मुनि महाराजों को दीक्षा दी है। इनमें 172 आर्यिका माताजी भी शामिल हैं। 20 ऐलक, 24 क्षुल्लक, 3 क्षुल्लिका शामिल हैं। इसके अलावा 1000 से अधिक ब्रह्मचारी भैया और ब्रह्मचारिणी बहनें भी आचार्यश्री के सानिध्य में मोक्ष मार्ग की ओर साधनारत हैं। उनके लिखे 100 से अधिक ग्रंथ, काव्य प्रकाशित हुए हैं। उनमें मूक माटी महाकाव्य सर्वाधिक लोकप्रिय है।
भाग्योदय सागर में सबसे अधिक 5 पंचकल्याणक हुए
आचार्यश्री के सानिध्य में अब तक 65 पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव हो चुके हैं। उनमें सागर का भाग्योदय तीर्थ परिसर ऐसा है, जहां सर्वाधिक 5 पंचकल्याणक एक ही भूमि पर हुए हैं। अंतिम पंचकल्याणक नेमावर में इसी माह 15 से 21 जून तक हुआ। आचार्यश्री के सानिध्य में लगभग 50 से ज्यादा समाधि हो चुकी हैं। आचार्यश्री के सानिध्य में पहला पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव फरवरी 1977 में छतरपुर जिले के जैन तीर्थ क्षेत्र द्रोणगिरी में हुआ था। सागर जिले में सर्वाधिक 16 पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव हुए हैं। सागर में 5 और बीना बारह में 3 पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव हुए हैं।
मुनि दीक्षा समारोह आज } भाग्योदय में होगा विधान, सुबह 7 बजे से शुरू होंगे कार्यक्रम, मुनिश्री के प्रवचन भी होंगे
आचार्यश्री के अब तक सबसे अधिक 37 वर्षाकालीन चातुर्मास मध्यप्रदेश में किए
आचार्यश्री के अब तक राजस्थान में 7, उत्तर प्रदेश, गुजरात और बिहार में 1-1, महाराष्ट्र में 5, छत्तीसगढ़ में 2 तो मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 37 वर्षा कालीन चातुर्मास हुए हैं। बुंदेलखंड के कुंडलपुर और महाराष्ट्र के रामटेक में सर्वाधिक 5-5, बीना बारह जिला सागर में 4 और अमरकंटक सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र में भी 4 चातुर्मास हुए हैं।उन्होंने मुनि अवस्था में पहला चातुर्मास अपने गुरु आचार्य ज्ञानसागर महाराज के साथ 1968 में अजमेर राजस्थान में किया था। उसके बाद 1969 में अजमेर 1970 एवं 1971 में किशनगढ़ 1972 में नसीराबाद अजमेर में चातुर्मास किए हैं। आचार्य पद पर विराजमान होने के बाद 1973 में पहला चातुर्मास ब्यावर अजमेर राजस्थान में हुआ था। उस समय उनके साथ कुछ ही साधु थे।
भाग्योदय में मुनि और आर्यिका संघ हैं विराजमान, उन्हीं के सानिध्य में होगा समारोह
भाग्योदय तीर्थ में विराजमान निर्यापक मुनिश्री समयसागर जी  महाराज के सानिध्य में बुधवार को सुबह 7 बजे से आचार्यश्री विद्यासागर जी बमहाराज का 53वां मुनिदीक्षा समारोह मनाया जाएगा। भाग्योदय में वर्तमान में मुनि संघ के अलावा आर्यिका ऋजुमति माताजी और आर्यिका अनंतमति माताजी के संघ की 32 माताजी विराजमान हैं। मंदिर में विधान होगा। सुबह 9 बजे से आचार्यश्री का पूजन होगा। बाद में मुनि श्री समय सागर जी  महाराज के प्रवचन भी होंगे।
आचार्यश्री विद्यासागर के गृहस्थ जीवन के दो भाई भी मुनि महाराज हैं। 
उनके गृहस्थ जीवन के भाई शांतिनाथ जैन अष्टगे प्रथम निर्यापक मुनि श्री समय सागर जी  महाराज और अनंतनाथ जैन अष्टगे द्वितीय निर्यापक मुनिश्री योग सागर जी  महाराज हैं। दोनों ही आचार्य संघ में पिछले 41 वर्षों से हैं। आचार्यश्री की गृहस्थ अवस्था के बड़े भाई महावीर प्रसाद अष्टगे भी आगामी समय में दीक्षा ले सकते हैं।
         संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी

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