भोपाल,-आचार्य श्री विद्यासागर जी व महाराज के परम शिष्य मुनिश्री संभव सागर महाराज सहित 09 मुनिराजों का राजधानी में प्रवास हो रहा है। इस वर्ष का वर्षायोग राजधानी में ही होगा। चतुर्मास के पूर्व भोपाल जैन समाज द्वारा मुनिसंघ की भव्य अगवानी 11 जुलाई को प्रातः 8 बजे डी.बी. माल बोर्ड आफिस चौराहे पर होगी। यहां से गाजे-बाजे के साथ अगवानी शोभायात्रा केसरिया ध्वज पताकाओं के तले हबीबगंज जिनालय पहुंचेगी यहां मूलनायक भगवान आदिनाथ की वंदना करने के पश्चात मुनिसंघ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से निर्माणाधीन भारत की अनमोल धरोहर भारत की अनमोल भव्य जिनालय श्री पंचबालयति सहस्त्रकूट जिनालय का अवलोकन करेंगे।
जैन समाज के मीडिया प्रभारी अंशुल जैन ने बताया कि 2016 में आचार्य श्री के ससंग के चातुर्मास के उपरांत 2021 का वर्षायोग करने उनके शिष्य मुनिश्री संभव सागर जी महाराज, मुनिश्री विराट सागर जी महाराज, मुनिश्री निर्मोह सागर जी महाराज, मुनिश्री निष्पक्ष सागर जी महाराज, मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज, मुनिश्री नीरज सागर जी महाराज, मुनिश्री निस्संग सागर जी महाराज, मुनिश्री समरस सागर जी महाराज और मुनिश्री संस्कार सागर जी महा राज राजधानी पधारे है और मुनिसंघ का इस वर्ष का पावन वर्षायोग राजधानी भोपाल में होना है।
आशीष वचन में मुनिश्री संभव सागर जी महाराज ने कहा कि जिनालय में श्रद्धाभक्ति के साथ पूजा-अर्चना और अनुष्ठानों के साथ अपने जीवन में परिणामों को सहज एवं सरल बनाकर जीवन जीने की कला अपनाओ अगर जीवन के मूलभूत प्रयोजन में यदि कुछ नहीं किया तो जीवन का क्या अर्थ है। आप सभी अपना जीवन यूँ ही चलाते आ रहे हो। मुनिश्री ने अर्थ-व्यर्थ -अनर्थ और परमार्थ को समझाते हुये कहा आप कुछ भी करते हो तो व्यर्थ होने से बचते और बचाते हो। वाहन भी चलाते हो तो ईंधन को बचाते हो अपने जीवन के मूल्यों और गौरव को समझो सांसों का महत्व तब समझ आता है जब आक्सीजन लग जाती है जीवन महत्व बहुत बड़ी बीमारी, महामारी और दुर्घटना के बाद होने वाली मौत को देखकर समझ में आता है उदाहरण देते हुये मुनिश्री ने समझाया कि दूध दुहना अर्थ है उपयोग नहीं करना व्यर्थ अर्थात दूध फट गया या रखे में खराब हो गया दूध को ढोल देना अनर्थ है और उसी दूध को जमाकर घी निकाल लेना परमार्थ है जिन्होंने त्याग के साथ अहिंसा की प्रेरणा से जीवन को समझा उनका कल्याण हुआ और वे महापुरुष हो गये जो नहीं समझ पाये वह जीवन की ठोकरें खा रहे हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी
