पठारी-हम ग्रंथों और शास्त्रों में किताबों में जो लिखा होता है उसको पढ़ते हैं, हमें उसका ठीक से उच्चारण करना चाहिए। अन्यथा अर्थ का अनर्थ होना निश्चित है। अगर हमें तत्व ज्ञान की बातें और धर्मोपदेश, ज्ञानी पुरुष के द्वारा की गई चर्चा अच्छी नहीं लगती तो समझ लेना हम अवनति के रास्ते पर जा रहे हैं। जिस प्रकार जब तक हम कड़वी औषधि नहीं खाते तब तक बुखार भी ठीक नहीं होता। उसी प्रकार दुःख से छूटने के लिए हमें गुरु के माध्यम से निरंतर अभ्यास करना होगा। उक्त उद्गार दिगंबर जैन मंदिर पठारी में विराजमान मुनि निर्दोष सागर एवं मुनि निर्लोभ सागर महाराज ने अपने प्रवचनों में व्यक्त किए। मुनिश्री ने बताया कि जिस गुरु से हम एक अक्षर भी सीखते हैं, उन गुरु का नाम हमें कभी भी छिपाना नहीं चाहिए और कभी भी गुरु की निंदा नहीं करना चाहिए। मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति में समता भाव धारण करना चाहिए। फिर क्यों न उसके सामने शत्रु या मित्र खड़ा हो। चातुर्मास सेवा समिति के अध्यक्ष अतुल कठरया ने बताया कि 24 जुलाई को पठारी में कलश स्थापना का कार्यक्रम होगा।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़ीया रामगंजमंडी
