मुनि के प्रति आस्था, विश्वास व श्रद्धा रखने की आवश्यकता हाेती है आचार्य

 बांसवाड़ा-मोहन कॉलोनी मे  में विराजित आचार्य श्री  सुंदर सागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन  में कहा कि विद्या तीन प्रकार की होती है। मातृ पक्ष, पितृ पक्ष और तप के बल से। 
उन्होने कहा मुनीराज काे जो विद्या प्राप्त होती है वह तप के बल से होती है। छठे गुण स्थान से 12वें गुण स्थान तक यह रिद्धियां होती है। इनमें छठे और सातवें गुण स्थान में ही मुनिराज इनका प्रयोग करते हैं। 
 यदि रिद्धि धारी मुनिराज यहां पर होते तो यह कोरोना महामारी पूरे विश्व में नहीं मिल पाती आचार्य श्री 
आचार्य श्री ने कोरोना पर प्रकाश डालते हुए कहा वर्तमान में कोरोना महामारी के कारण पूरा विश्व जूझ रहा है, पर काेराेना महामारी से बचाव के लिए यदि रिद्धि धारी मुनिराज यहां पर होते तो यह कोरोना महामारी पूरे विश्व में नहीं मिल पाती। ऐसा प्राचीन उदाहरणों में भी है। 

आचार्य श्री ने बताया कि मथुरा में एक बार महामारी हुई थी। तब रिद्धि दारी मुनि द्वारा साधना की गई तब यह बीमारी दूर हो गई थी। इस तरह का उदाहरण जैन पद्म पुराण में मिलता है। जो मुनिराज साधना कर रहे हैं उनके प्रभाव से भी इस महामारी को दूर किया जा सकता है। हमें इनमें आस्था, विश्वास व श्रद्धा रखने की आवश्यकता हाेती है।
               संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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