इंसान खुद कर्म का जाल बुनता है और उसी में फंसता है-मुनि श्री

अन्तर्मुखी महाराज की मौन साधना का 9वां दिन
डुंगरपुर-अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज ने मौन साधना के 9 वें दिन कहा आज  कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है। घबराहट, बेचैनी सी हो रही थी। ऐसा अनुभव हो रहा था कि अनजान जगह आ गया। आज से पहले ऐसा अनुभव नहीं हुआ था। एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी। अजीब सी अनुभूति लक्ष्य की प्रथम सीढ़ी पर प्रथम कदम रखने की थी। मन उत्साहित, आनंदित हो गया। प्रभु का स्मरण कर आंखें खुशी से नम हो गईं। अपनी भावनाएं, विचार प्रभु बांटने लगा। जैसे बच्चा अपनी मां से मिलने पर रखता है।  प्रभु आपकी शरण में आने से आत्मिक शांति तो मिल गई। बस अब तो इंतजार  है कर्मों के जाल से बचकर अपने आप को सुरक्षित करने का। कर्म का जाल मैं स्वयं बुनता हूं, स्वयं ही फंस जाता हूं। कड़ी की तरह वह अपने द्वारा बनाए जाल में फंस जाता है। कर्म ही सुख-दुख का अनुभव करा रहा है।  कर्मो के कारण ही दूसरों के द्वारा अच्छा-बुरा बन रहा हूं।
           आज पुनः संकल्प को दोहराता हूं कि आप के बताए मार्ग पर आस्था और श्रद्धा के साथ सदैव चलता रहूंगा। प्रभु मेरी यही प्रार्थना है कि कभी तर्क-वितर्क और कुतर्क कर्मों के उदय में बाधा ना हो। किसी बात पर मेरे निमित्त धर्म की अप्रभावना कभी ना हो। पूरे सच्चे मन और निर्मल भाव से आपकी भक्ति करते हुए पहला कदम रखा है।
        संकलन  अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी

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