आज की सभा के पुण्यार्जक जयपुर हाऊस व राजामन्डी शैली थे! गुरुवर के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य

*पुण्य का फल मिलना आसान नहीं, और मिले तो उसे संभालना आसान नहीं- प्रणम्य सागर जी            

 आगरा, 
, पार्श्वकथा के चौथे दिन चक्रवर्ती सम्राटों के वैभव का वर्णन करते हुए मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज  ने बताया कि चक्रवर्ती  की सम्पत्ती मे नौ निधी व 14 रत्न होते हैं, वे इतने होते हैं कि संभाले नहीं संभलते। बहुत पुण्य  से यह सब मिलते हें, परन्तु जो बडा अन्दर से होता है , गुणवान होता है, झुकना जिसे आता है वही इस सम्पत्ती को संभाल सकता है।
 सुभौम चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुये कहा कि उन्हे  घमण्ड आ गया और इच्छित वस्तु न मिलने मात्र से रसोईये पर क्रोध आ गया, जिस कारण रसोइये की म्रत्यु हो गयी। और उसी रसोइया ने देव बनकर उनसे नवकार मन्त्र की अवज्ञा करा नर्क योनी की राह दिखादी। परन्तु भगवान पार्श्वनाथ ने पूर्व भव मे वज्रनाभी चक्रवर्ती पद को भी पाकर अपने आप को भूले नहीं और चक्रवर्ती की अतुल्य सम्पत्ती को क्षण भर मे त्याग,  मुनि पद धारण कर अपने अगले भवो को सुन्दर, बनाने मे लग गये। इसीलिये सम्पत्ती, सत्ता आ जाने से इंसान को भी उसके नशे मे नही आना चाहिए और सदैव झुक कर रहना चाहिए, जैसे कि फलदार व्रक्ष।     

 श्री संजय जैन, रेनू जैन एन के एक्सपोर्ट परिवार, राजामन्डी रहे और  भगवान पार्श्वनाथ की आरती करने का सौभाग्य श्री जितेन्द्र कुमार, नरेन्द्र कुमार जैन, जयपुर हाऊस को मिला।              

 चित्र अनावरण डा सुरेशचन्द जैन, दीपक जैन, अजय जैन को मिला, व  दीप प्रज्वलन श्री राजकुमार जैन व सुबोध जैन बड़जात्या, राहुल जैन , निर्मल जैन ने किया। श्रमण संस्क्रती संस्थान सांगानेर जयपुर से पधारे श्री उत्तमचन्द जी पाटनी व अनिल जी बिलाला का स्वागत श्री प्रदीप जैन  PNC, जगदीश प्रसाद जैन, सुनील जैन व राकेश पर्दे, निर्मल मोठ्या ने किया! 
संगीत स्वर दीपक जैन द्वारा किया गया व संचालन मनोज कुमार जैन कमला नगर ने किया।
संगीत व स्वर संभाला दीपक जैन व संस्कृती जैन ने! 
          संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमडी

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