विश्व वन्दनीय आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की परम विदुषी आर्यिका 105 पूर्णमति माताजी का आज हम आर्यिका दीक्षा दिवस मना रहे है। यह बहुत ही गौरव का क्षण है आचार्य श्री के संघ में आप ऐसी विदुषी आर्यिका है जिनके ग्रहस्थ जीवन के पिता समाधिस्थ मुनि श्री 108 हेमंत सागर जी महाराज हुए। आपकी साधना निष्प्रहता सचमुच अद्वितीय है। आपकी वाणी के द्वारा जन जन का कल्याण हो रहा है। आपकी वाणी की मधुरता से आपको सभी स्वर कोकिला से संबोधित करते है।
आपका जन्म राजस्थान के डूंगरपुर जिले में हुआ आपका दीक्षा से पूर्व नाम बाल ब्रह्मचारिणी वीणा जी रहा आपका जीवन धार्मिक परिवार में हुआ आपके पिता श्री अमृत लाल जैन थे जो बाद में मुनि श्री 108 हेमंत सागर जी हुए। माता रुकमणी देवी की राजदुलारी का जन्म 14 मई 1964 को बैसाख शुक्ल 3 संवत 2021 को डूंगरपुर राजस्थान में हुआ आपने लौकिक शिक्षा का हायर सेकंडरी तक की ।
त्याग तप की और अग्रसर
महज 6 वर्ष की उम्र में त्याग तप की और बढ़ गई सन 1969 में शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर जी मे ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। यह पथ और फलीभूत हुआ और सन 1983 में आहार जी अतिशय क्षेत्र में 10 प्रतिमा व्रत अंगीकार किया। आप साधना का प्रस्तर बन आगे बढ़ती बढ़ती गयी समय आ गया जब नारी का सर्वोत्कृष्ट पद आर्यिका दीक्षा 7 अगस्त 1989 श्रावण शुक्ला षष्टी संवत 2046 को सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर जी जिला दमोह में विश्व वन्दनीय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा प्रदान की गयी। और नामकरण हुआ आर्यिका 105 पूर्णमति माताजी
आर्यिका माताजी ने साधना जीवन मे अनेक साहित्यों का लेखन किया और जन जन का कल्याण किया आपके मुख से मुकमाटी काव्य को सुन मन्त्रमुग्ध हो जाता है। ऐसी महान साधिका के चरणों मे कोटिश नमन
अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमडी
