ग्वालियर. जिले की भितरवार सीट पर सबकी निगाहें हैं, वजह, इस बार इस सीट पर जो चेहरे जंग के मैदान में उतरेगे वे सब नए होंगे या बदले जाएंगे , कांग्रेस का तो लगभग तय है कि 2023 में भी लाखन सिंह यादव ही उम्मीदवार होंगे लेकिन दो बार चुनाव हार चुके अनूप मिश्रा को भाजपा शायद ही मौका दे, कांग्रेस से सिंधिया समर्थक मोहन सिंह राठौर के आ जाने से भाजपा के समीकरण गड़बड़ हैं, राठौर भी ताल ठोक सकते हैं, ब्रजेन्द्र तिवारी भी एक बार फिर मैदान में आ सकते हैं और इसके अलावा भाजपा की ओर बीनू पटेल भी दावेदारी करेंगे , बीनू पटेल बसपा से चुनाव भी लड़ चुके हैं । वे सब नब्बे के दशक में इसी मैदान में आमने -सामने थे। भाजपा के अनूप मिश्रा, कांग्रेस के लाखनसिंह यादव और भाजपा से टिकट न मिलने से राष्ट्रीय समानता दल के टिकट पर मैदान में उतरे बृजेंद्र तिवारी के लिए भितरवार सीट एक मायने में मैदान तो पुराना ,पर हालात कई मायने में एकदम बदले हुए से ।
एक-दूसरे को हराने और खुद जीत हासिल करने लिए कड़ी मशक्कत हर एक को करना पड़ सकती है। चुनाव तो वैसे भी किसी भी सूरत में आसान नहीं होगा, पर इस बार का चुनाव इन तीनों ही नेताओं के लिए पिछले चुनावों से कहीं ज्यादा चुनौती भरा होगा और शायद मुश्किल भी।
भाजपा ने अनूप मिश्रा को टिकट दिया तो संगठन भी उनका साथ देगा,यह एक बड़ा सहारा है। कांग्रेस के विधायक लाखन सिंह यादव की अपनी बारहमासी चुनाव प्रबंधन शैली है। वे पक्के मकानों से लेकर कच्ची खपरैल, मजरे टोलों में फैली झोपडिय़ों में बसे वोटरों तक सीधे पहुंच रखते हैं। उनके बीच उठने-बैठने से लेकर खाने तक से उन्हें कोई गुरेज नहीं। इस बार उनके इसी जनाधार की परीक्षा होगी। इन दोनों से अलग बृजेंद्र तिवारी अपनी एक अलग पहचान को लेकर सम्मान की लड़ाई लड़ सकते हैं। क्षेत्र में उन्हें नौजवान तो क्या अधेड़ और बुजुर्ग होते लोग भी दादा और बब्बा ( बाबा) का संबोधन देते हैं, तो कुछ लोग राजनीति का संत। जो लोग उन्हें चेहरे से नहीं जानते हैं, उनकी जुबान पर भी यही चर्चा कि दादा चुनाव लड़ सकते हैं। इन तीनों के मुकाबले में जातीय समीकरणों के सहारे बसपा और बहुजन संघर्ष दल के प्रत्याशी समीकरण बिगाड़ेंगे।
वर्ष 1990 का विधानसभा चुनाव । बृजेंद्र तिवारी, अनूप मिश्रा और लाखन सिंह यादव के लिए राजनीतिक सफर का यह शुरुआती दौर था। तीनों ही पहली बार इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने उतरे थे। तब भितरवार की पहचान गिर्द विधानसभा क्षेत्र के नाम से थी। भाजपा जे अनूप मिश्रा ने यह चुनाव जीता था और कांग्रेस के कद्दावर नेता बालेंदु शुक्ल पराजित हुए थे। लाखन सिंह यादव (बसपा) तब तीसरे नंबर पर रहे थे और समाजवादी पृष्ठभूमि वाले बृजेंद्र तिवारी उनके बाद। इसके बाद 1993 के चुनाव में कांग्रेस के बालेंदु शुक्ल ने अनूप मिश्रा से अपनी हार का बदला चुकाकर जीत दर्ज की। इस चुनाव में बसपा के लाखन सिंह यादव दूसरे नंबर पर रहे, जबकि अनूप मिश्रा तीसरे पर थे तो बृजेंद्र तिवारी उनके बाद।
वर्ष 1998 के चुनाव में राजनीतिक परिदृश्य बदला। भाजपा और कांग्रेस को छोड़ यहां के मतदाताओं ने बसपा का साथ दिया। लाखनसिंह यादव विधायक बने। उन्होंने कांग्रेस के बालेंदु शुक्ला को करीब दस हजार वोटों के अंतर से हराया। बृजेंद्र तिवारी इस चुनाव में भी मैदान में थे, जबकि भाजपा के अनूप मिश्रा यहां का मैदान छोड़कर ग्वालियर पश्चिम सीट से लड़े और कांग्रेस के भगवान सिंह यादव को हराकर विधानसभा में पहुंचे । इसके बाद 2003 के चुनाव में बसपा के लाखनसिंह यादव कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे तो बृजेंद्र तिवारी भाजपा उम्मीदवार के तौर पर। दोनों के मुकाबले में श्री तिवारी करीब दस हजार वोटों के अंतर से जीते। कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरे रामनिवास गुर्जर इस चुनाव में समानता दल से थे तो मोहनसिंह राठौर बसपा से। दोनों ही जमानत तक नहीं बचा सके। 2008 में भाजपा के बृजेंद्र तिवारी, कांग्रेस के लाखनसिंह यादव से फिर हार गए। अंतर फिर वही दस हजार वोटों का रहा। जवाहर रावत इस चुनाव में बसपा से थे।
