पोहरी की चाहत सिर्फ चेहरा बदलने की या दल भी

विशेष खबर पोहरी-साल 2018 मध्यप्रदेश के लिए खास साल है क्योंकि इसी साल के अंत मे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव होना है । इसके लिए प्रदेश में दोनों ही मुख्य दलों ने अपनी - अपनी कमर कस ली है । जहाँ एक ओर प्रदेश के मुखिया अपने तीन बार के कार्यों के बलबूते पर जनता से आशीर्वाद लेने निकले हैं तो दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल पोल खोल यात्रा के सहारे मौजूदा सरकार की विफलताओं को जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है । कहा तो ये जा रहा है मध्यप्रदेश शिव के राज में खुशहाल और प्रगतिशील राज्य बन गया है लेकिन राजा और महाराजा महलों को छोड़कर सत्ता सुख के लिए जनता के बीच पहुँचकर पसीना बहा रहे हैं ।
मौजूदा सरकार की स्तिथि कुछ ठीक नहीं है तभी तो केंद्रीय नेतृत्व भी चिंतित है इसलिए बार बार सर्वे कराया जा रहा है जिसमे लगभग सात आठ दर्जन विधायकों के अलावा एक दर्जन मंत्रियों के चुनाव हारने की रिपोर्ट ने मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी को भी चिंता में डालकर चैन की नींद में खलल डाल दिया ।
      विधानसभा पोहरी पर एक नज़र डाली जाए तो मौजूदा विधायक का नाम कभी असंमजस की जीत वाली सूची में तो कभी हारने वाले विधायकों की सूची में शामिल होता है । भाजपा सत्ता गँवाना नहीं चाहती तो कांग्रेस भी हथियाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है ।ऐसे में पोहरी के साथ क्या होगा कोई नहीं जानता । भाजपा विधायक के विकास कार्यों की ब्रांडिंग नहीं हुई या फिर जनता से संपर्क कम हो गया । भाजपा किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहती है तो क्या ऐसे में मौजूदा विधायक की जीत पर असमंजस को लेकर चेहरा बदलकर निश्चिंत होना चाहती है या फिर उन्हीं पर दाँव खेलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता है । यदि चेहरा बदलती है तो कौन होगा उत्तराधिकारी इस बात की चर्चा शहर की सड़कों पर होती दिख जाती हैं तो गाँव की चौपाल पर भी खासी दिलचस्पी दिखाई देती है । यदि चेहरा बदलेगा तो मात खा चुके चेहरों को आजमाने की कोशिश होगी या फिर समाजसेवा  के दरवाजे से राजनीति के घर में प्रवेश करने वालों को मौका मिलेगा ।
काँग्रेस दस साल से पोहरी की राजनीति में वनवास काट रही है इसलिए वो भी वापिसी के लिए लालायित है लेकिन पोहरी से विधानसभा की यात्रा तय करने की चाहत दिल मे रखने वाले महाराजा की ओर आशा भरी निगाहें ताक रहे हैं । वहाँ भी दावेदार कम नहीं है एक लंबी फेरिहस्त में सभी दलों में रहकर घर वापिसी करने वालों से लेकर पंचायतीराज की राजनीति में सफलता प्राप्त करने वाले भी अनेकों कार्यक्रम में टिकिट के लिए महाराज के पीछे दिखाई देते नजर आते हैं ।

तो क्या जाति आधार पर मिलेंगे टिकिट-पोहरी की राजनीति पर गौर किया जाए तो एक परम्परा रही है कि विधायक कोई भी बने लेकिन ग्वालियर के जय विलास पैलेस की छत्र छाया में रहने वाला ही बना है अपवाद को छोड़ दिया जाए तो । यहाँ धाकड़ और ब्राह्मण जाति के लोगों को ही तवज्जो दी जाती है लेकिन तीसरे दल से तीसरी जाति के उम्मीदवार ने 2013 कर विधानसभा चुनाव में जीत के अंतर को कम कर दिया था । राजनीतिक गलियारों से मिली खबर और राजनीतिक पंडितों की मानें तो पोहरी किले को फतह करने के लिए कांग्रेस मुंगावली की तरह जाति कार्ड खेल सकती है । लेकिन पोहरी के मतदाता अपने दिल में एक क्षेत्रीय नेता के प्रतिनिधित्व के अरमान पाल रहे हैं फिर चाहे कोई भी जाति हो या फिर कोई भी दल । अब देखना होगा कि पोहरी में केवल चेहरा बदलेगा या फिर चेहरे के साथ दल ।

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